
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी साख अलग-अलग क्षेत्रों में चुनावी लड़ाई ने राजस्थान के रण को रोचक बना दिया है। पहले केवल वसुंधरा राजे को ही अपने बेटे के लिए वोट मांगते देखा जाता रहा है, इस बार उनके साथ अशोक गहलोत भी अपने बेटे के लिए प्रचार में जुटे हैं और घर-घर व गली-गली घूमते हुए वैभव के लिए वोट मांग रहे हैं। गहलोत के बेटे वैभव गहलोत कांग्रेस के टिकट पर जोधपुर से पहली बार कोई चुनाव लड़ रहे हैं, तो झालावाड़-बारां सीट से जीत की हैट्रिक लगा चुके वसुंधरा राजे के बेटे सांसद दुष्यंत सिंह चौथी बार मैदान में हैं।
भाजपा सांसद दुष्यंत सिंह ने मां की विरासत को सुरक्षित रखा है, लेकिन वैभव पहली इस चुनाव में पिता का गढ़ बचाने की जिम्मेदारी उठायेंगे। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस में पक्ष में आये आंकड़े वैभ्ज्ञव के अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद जगा रहे हैं। जोधपुर की 8 विधानसभा सीट में से कांग्रेस छः जीती थी।
म्तदाताओं के जहन में वैभव व दुष्यंत नहीं, बल्कि गहलोत और वसुंधरा राजे ही हैं। इन जिगर के टुकड़ों की जीत-हार पिता व मां की साख से सीधी जुड़ी हुयी है, ये जीते तो श्रेय मिलेगा व हारे तो आलोचना। यह चुनाव खुलासा कर देगा कि किसकी रणनीति अधिक कामयाब रही।
दुष्यंत भले ही तीसरी बार सांसद हैं, लेकिन क्षेत्र में वे अपनी मां के प्रभाव से ऊपर नहीं उठ पाये और लोग भी राजे को ही नेता मानकर उनके पक्ष में मतदान करते हैं। यही बात वैभव गहलोत पर लागू हो रही है। झालावाड़-बारां सीट से वसुंधरा राजे पांच बार सांसद रहीं, 2003 में झालरापाटन से विधानसभा गयीं, वहीं जोधपुर सीट से अशोक गहलोत पांच बार सांसद रहने के बाद इसी क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली सरदार पुरा सीट से लगातार पांचवी बार विधानसभा चुनाव जीते।
वैभव का मुकाबला केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से है। अशोक गहलोत जानते हैं कि वैभव के लिए डगर काफी कठिन है। वैभव और वह अपने काम के आधार पर वोट मांग रहे हैं। इधर, शेखावत मोदी के हाथ मजबूत करने के लिए वोट मांग रहे हैं। गहलोत की सादगी के कारण लोग उन्हें ‘मारवाड़ का गांधी‘ भी पुकारते हैं। वहीं, गजेंद्र छात्र राजनीति से आरएसएस व स्वदेशी जागरण मंच से भी जुड़े रहे, उन्हें व्यवहार कुशल व जमीन से जुड़ा नेता माना जाता है।
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