लोकसभा चुनाव में चुनाव आयोग की सक्रियता पूरे देश में नजर आयी। राज्यों की सरकारों ने चुनाव आयोग के निर्देश, आदर्श आचार संहिता का अनुपालन करते हुए काम किया, लेकिन पश्चिम बंगाल में चुनाव आयोग अब तक हुए छः चरणों में मतदाताओं को डराने, धमकाने, हिंसा, नेताओं की जनसभाओं को न होने देने, सत्तारूढ़ पश्चिम बंगाल सरकार के निरंकुश अधिकारियों पर कोई अंकुश नहीं लगा सका, वहां हालात ऐसे हैं जो संदेश दे रहे हैं कि चुनाव आयोग बंगाल में प्रभावी नहीं है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ राजनैतिक कैंपेन में कोई कुछ बोले उसका जेल जाना तय। लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के खिलाफ चुनाव आयोग ने आचार संहिता के मामले में एक भी शिकायत पर कोई भी कार्यवाही नहीं की।
चुनाव आयोग पश्चिम बंगाल के प्रशासन पर आंख मूंदकर उसकी रिपोर्टों को मान रहा है जो बंगाल की अराजकता के लिए जिम्मेवार हैं और दिल्ली में बैठकर छः चरणों की हिंसा के बाद भी कोई सख्त कदम चुनाव आयोग उठाकर सख्त संदेश नहीं दे पाया है। चुनाव प्रचार के दौरान बंगाल जल रहा है। कोलकाता में भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह के रोड शो में हिंसा यही कुछ बताती है। मुख्यमंत्री तो इतनी गुस्से में हैं कि उनके खिलाफ किसी ने कुछ बोला नहीं और उन्होंने उसको धमकाया नहीं। उनके विरूद्ध राजनैतिक भाषण देने वाले भी उनके निशाने पर हैं। सोशल मीडिया में किसी ने उनके खिलाफ कुछ लिख दिया तो तत्काल ममता की पुलिस उसे बिना सोचे समझे जेल में डाल देती है।
जलते हुए बंगाल में चुनाव आयोग की भूमिका भी अजीब नजर आ रही है। वहीं लोकतंत्र की दुहाई देने वाले भी तब चुप बैठे हैं जब बंगाल में लोकतांत्रंक अधिकारों को वहां की सरकार खुलेआम रौंद रही है। असहमति रखने वालों को बोलने नहीं दिया जा रहा, दूसरे दलों के प्रत्याशियों को खुलेआम पीटा जा रहा है। ऐसे में संवैधानिक सस्थाएं भी बहुत कुछ आंखों से देखने के बाद भी मौन हैं।