Friday, September 20, 2024

Loksabha Polls 2019, News, Politics, States, Uttar Pradesh

सपा प्रमुख अखिलेश यादव को बसपा सुप्रीमो मायावती ने दे दिया ‘गच्चा‘

उत्तर प्रदेश की राजनीति में लोकसभा चुनावों के दौरान सपा, बसपा के महागठबंधन के बारे में प्रधानमंत्री के चुनावी भाषणों में जो भविष्यवाणी की जा रही थी, उसे राजनैतिक पंडित हल्के में ले रहे थे और चुनावी बातें कहकर टाल रहे थे। प्रधानमंत्री ने कहा था कि 23 मई इस गठबंधन की ‘एक्सपाइरी डेट‘ है और हुआ भी वही।
बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने सोमवार को दिल्ली में अपनी राह सपा से जुदा कर ली। मायावती के बारे में कहा जाता है कि विरोधी रणनीति बनाते रह जाते हैं और वह अपना दांव चलकर आगे बढ़ जाती हैं। मायावती ने लोकसभा चुनावों के बाद विधानसभा की खाली हो रही सभी 11 सीटों पर उपचुनाव लड़ने की घोषणा कर यही साबित कर दिया है।

उन्होंने समाजवादी पार्टी की रणनीति पर पानी फेर दिया है। मायावती ने गठबंधन को बिना ध्यान में रखे प्रदेश की सभी 403 विधानसभा सीटों पर भाईचारा कमेठियां गठित कर चुनावी तैयारी का आहवान बसपा कार्यकर्ताओं से कर दिया है और सपा पर दबाव बना दिया है।
सपा प्रमुख अखिलेश यादव लोकसभा चुनाव परिणामों के बाद हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहे, उन्हें उम्मीद थी कि बसपा उपचुनाव नहीं लड़ती है इसलिए 11 सीटों पर वह उपचुनाव नहीं लड़ेगी और उनकी पार्टी को बसपा का एकतरफा समर्थन उपचुनावों में मिल जायेगा, लेकिन मायावती ने अपना दांव चल दिया और आगे बढ़ गई।
उत्तर प्रदेश की राजनीति को नजदीकी से देखने वाले विश्लेषकों का कहना है कि मायावती गठबंधन पर अपना कड़ा रूख और अलग राह पर चलकर समाजवादी पार्टी की कमजोरियां उजागर करने में कामयाब हो रही हैं। दिल्ली में जो कुछ उन्होंने कहा उससे उन्होंने साफ संदेश दिया कि बसपा का वोट बैंक अपनी जगह कायम रहा, मुस्लिमों के समर्थन से मिलने वाली 10 सीटें लोकसभा चुनावों में उन्होंने जीती हैं। इस जीत में सपा के यादव वेस वोट का योगदान नहीं रहा है। दूसरी ओर मायावती ने यह भी संदेश दे दिया है कि सपा का अपने यादव वेस वोट पर पहले जैसा एकाधिकार नहीं रहा है। कन्नौज, बदायूं, फिरोजाबाद में यादव परिवार के सदस्यों की हार और मैनपुरी में मुलायम सिंह यादव के वोट का जीत का अंतर कम होना इसका प्रमाण है।

बसपा सुप्रीमो मायावती के दांव से सपा प्रमुख अखिलेश यादव बुरी तरह अपनी ही पार्टी में घिरे हुए नजर आ रहे हैं। उनके नेतृत्व और राजनैतिक सूझ-बूझ, फैसलों में मनमानी पर सवाल उठने लगे हैं। 2012 के विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी ने मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में लड़ा था, तब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने, लेकिन उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने समाजवादी पार्टी का नेतृत्व भी अपने हाथ में ले लिया और राजनैतिक फैसलों में अपने पिता मुलायम सिंह यादव को दूर कर दिया। तब से पार्टी में विभाजन हुआ, शिवपाल यादव अलग हो गये और पुराने जमीन से जुड़े नेताओं ने अखिलेश यादव के अहंकार को देखकर अपनी राह जुदा कर ली।

यही कारण रहा कि मुलायम सिंह यादव के न चाहते हुए भी उत्तर प्रदेश में मर चुकी कांग्रेस से समझौता कर विधानसभा चुनाव लड़े और सौ सीटें कांग्रेस को ऑफर कर दीं। करारी हार हुयी और उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी चली गयी। इस गठबंधन से सबक लेने की बजाय लोकसभा चुनावों में हवा-हवाई नेताओं की सलाह पर जमीनी हकीकत जाने बगैर मुलायम सिंह यादव की 26 साल की राजनैतिक दुश्मनी को दरकिनार कर बसपा से समझौता कर लिया और मुंह की खाई। इस गठबंधन की वह कोई समीक्षा करते, उससे पहले ही बसपा सुप्रीमो मायावती ने उपचुनाव के बहाने अपनी राह अलग कर ली।

राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव पांच दशक तक राजनीति के सूरमा रहे अपने पिता मुलायम सिंह यादव के ईर्द-गिर्द भी फिट नहीं बैठते। यही कारण है कि न उनके भाषणों में दम है और न राजनैतिक निर्णयों में। उनके फैसलों में बचपना झलकता है, यही कारण है कि वह अपने पिता मुलायम सिंह यादव के दम पर मुख्यमंत्री तो बन गये और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष भी बन गये लेकिन उनके दांवपेंच और उनकी राजनैतिक सूझ-बूझ में बहुत पीछे छूट गये।

Vijay Upadhyay

Vijay Upadhyay is a career journalist with 23 years of experience in various English & Hindi national dailies. He has worked with UNI, DD/AIR & The Pioneer, among other national newspapers. He currently heads the United News Room, a news agency engaged in providing local news content to national newspapers and television news channels