आगरा के अधिकारियों पर मुख्यमंत्री के आदेश, निर्देश पूरी तरह बेअसर साबित हो रहे हैं। चुनाव समाप्त होने के बाद केंद्र में सरकार बन गयी है, संसद का सत्र शुरू हो गया है, लेकिन अधिकारी जन समस्याओं के लिए विभागों में ढूढ़े नहीं मिल रहे।
जनता के लोग आवेदनों को लेकर एक दफ़्तर से दूसरे दफ़्तर चक्कर काट रहे हैं, साहब मीटिंग में कमिश्नरी गये हैं, दूसरे जनपद में गये हैं, दौरे पर हैं, ऐसे शब्दों को सुन-सुनकर लोग परेशान होकर अब राज्य सरकार की व्यवस्था को कोसने लगे हैं।
मुख्यमंत्री निर्देश दे रहे हैं कि तीन दिन से ज्यादा फाइल किसी पटल पर रुकनी नहीं चाहिए, यहां आगरा विकास प्राधिकरण, नगर निगम, बेसिक शिक्षा विभाग ऐसे हैं जहां पर महीनों से एक-एक टेबिल पर फाइलें अटकी हुयी हैं। आगे उन पर निर्णय नहीं दिये जा रहे। सुविधा के अनुसार फाइलें निकाली जा रही हैं।
लोकसभा चुनावों की आचार संहिता लागू होने से पहले की लम्बित पत्रावलियों को अब जाकर निकाला जा रहा है, जहां मुख्यमंत्री के निर्देशों की हवा नौकरशाही ने पूरी तरह से निकालकर रख दी है। योजनाओं को लेकर लेट-लतीफी इतनी है कि मुख्यमंत्री की गुस्सा, मुख्य सचिव के जबाब तलब के बावजूद भी आईएएस अधिकारी काम करने का मूड़ नहीं बना पा रहे हैं।
स्मार्ट सिटी पर काम सिर्फ लकीर पीटने के लिए कर रहे हैं। जहां पर विकास कार्य होने हैं, वहॉं के सत्तारूढ़ दल के विधायकों को भी आईएएस अधिकारी ठेंगे पर मार रहे हैं। आगरा छावनी के विधायक डॉ. जीएस धर्मेश अपनी अनदेखी से नाराज हैं, उनका कहना है कि अधिकांश कार्य उनके विधानसभा क्षेत्र में कराये जा रहे हैं, लेकिन निरंकुश अधिकारियों ने उनसे विचार विमर्श तक नहीं किया है।
इसी तरह की शिकायतें भाजपा के विधायकों और जनप्रतिनिधियों की हैं कि उनकी अनदेखी आगरा के अधिकारी कर रहे हैं और मनमाने ढंग से कामों को कर रहे हैं। सरकारी की प्राथमिकताओं को यह अधिकारी नजरअंदाज कर रहे हैं।