कुछ लोग समाज को एक दिशा देने के लिये बिना सुर्खियां मे आये चुपचाप ताउम्र मिशन जुटे रहते है ऐसे ही थे एटा जिले के शिक्षाविद् डा0 रामेश्वर दयाल उपाध्याय जिनकी आज पुण्यतिथि है । आज़ादी के बाद से ही अशिक्षा का अभिशाप झेल रहे एटा क्षेत्र के लोगों में शिक्षा की ज्योति प्रज्जवलित करने वाले शिक्षाविद् डा0 रामेश्वर दयाल उपाध्याय का जन्म सन् 1931 में एटा जिले के ग्राम धुआई में हुआ था। आज उनकी छठी पुण्यतिथि पर उनके गृह जनपद में उनका स्मरण किया गया और उनको श्रद्धा-सुमन अर्पित किये गये।
जिस समय डा0 उपाध्याय ने एटा जिले में शिक्षा की ज्योति जलाने का प्रण लिया था, समय यह उत्तर प्रदेश की ऐसी पिछड़ी जगह थी जहाॅं पर साक्षरता दूर-दूर तक नजर नहीं आती थी। डा0 उपाध्याय ने क्षेत्र में शिक्षा के प्रसार-प्रचार के लिये कदम उठाये और लोगों को शिक्षा के प्रति जागरूक बनाने के लिये अपने गांव से शुरूआत की। उन्होंने गांव-गांव, घर-घर जाकर लोगों को साक्षर बनने के लिये प्रेरित करने का काम किया। सन् 1952 में उन्होंने एटा जिले के ही एक गांव के स्कूल में अध्यापन कार्य शुरू कर लोगांे को शिक्षित करने की ठान ली।
सन् 1968 में उन्होंने आचार्य विनोवा भावे की प्रेरणा से स्थापित हुए सर्वाेदय इण्टर काॅलेज में ग्रामीण परिवेश के छात्र-छात्रों को शिक्षा देने का जिम्मा संभाला और उसके बाद वह लगातार एटा समेत आस-पास के सभी पिछड़े क्षेत्रों में लोगांे को शिक्षित और शिक्षा पर जोर देने का काम करते रहे।
जीवनभर शिक्षा में सुधार के प्रयासों में उन्होंने प्रदेश स्तर पर कई आंदोलनों की अगुवाई की, माध्यमिक शिक्षक संघ जैसे संगठनों के साथ मिलकर राज्य की सरकारों से छात्र एंव शिक्षकों के हितों को लेकर टकराने में उन्हें किसी भी तरह का संकोच नहीं रहा।
उनके साथ के शिक्षाविद् रहे एमडी जैन इण्टर काॅलेज, आगरा के पूर्व प्राचार्य पूर्णकान्त त्यागी बताते हैं कि सन् 1968 में उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन था और प्रदेश भर के शिक्षक शिक्षा क्षेत्र में परिवर्तन को लेकर आन्दोलन पर थे, हड़ताल हो गयी थी।
ऐसे में कासगंज के एक काॅलेज ने सन् 1968 में हड़ताल के विरूद्ध जाकर बगावत की तो इस बगावत का जबाब देने के लिये डा0 रामेश्वर दयाल उपाध्याय जबरन शिक्षक एंव छात्रों के हित में किये जा रहे आन्दोलन के समर्थन में इस काॅलेज के प्रबन्ध तंत्र से भिड़ गये और इस काॅलेज को बन्द कराने के लिये उन्हें दो माह तक जेल में भी रहना पड़ा।
इसी तरह उनके एक और साथी माध्यमिक शिक्षक संघ के वरिष्ठ नेता रहे रामलाल कुशवाह बताते हैं कि शिक्षक आन्दोलन को मजबूती प्रदान करने वाले डा0 उपाध्याय ही थे कि उनकी अगुवाई में कभी भी कोई भी आन्दोलन दबावांे के बावजूद भी टूट नहीं सका था। श्री कुशवाह बताते हैं कि सन् 1977-78 में जिला प्रशासन शिक्षकों की गिरफ्तारी नहीं कर रहा था और शिक्षकों का आन्दोलन काफी दिनों से चल रहा था, ऐसे में डा0 उपाध्याय ही थे जिन्होंने जिला प्रशासन को चेतावनी दी कि उसे या तो आन्दोलन खत्म कराने के लिये उनकी मांगों को मानना होगा अन्यथा शिक्षकों को जेल भेजना होगा। उन्हीं की अगुवाई में शिक्षकों द्वारा 12 दिसम्बर सन् 1977 को जबरन धारा 144 तोड़ी गयी और शिक्षकांे की गिरफ्तारी हुयी। 24 दिन तक डा0 उपाध्याय इस आन्दोलन मे जेल में रहे और उनके जेल जाने के बाद पूरे प्रदेश में शिक्षकों के आन्दोलन को हवा मिली और सरकार को झुकना पड़ा।
शिक्षा जगत में अवस्मरणीय महत्वपूर्ण योगदान देने वाले डा0 रामेश्वर दयाल उपाध्याय का 13 अगस्त 2013 मेें निधन हो गया था, उनके पैतृक गांव धुआई में उनके नाम पर एक “स्मृति स्थल“ का निर्माण किया गया है।