पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी आज पुण्य तिथि है दिल्ली में उनका स्मारक भी बन गया जहां देशभर के लोग
आज उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित कर रहे हैं वहीं उत्तर प्रदेश सरकार उनके पैतृक गांव बटेश्वर को भूल गयी है जहां उनकी यादें आज भी अटल हैं। उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार ढाई साल से चल रही है, सरकार ने वाजपेयी जी नाम ले ले लेकर बड़े- बड़े वादे किए लेकिन अफसरों की लापरवाही से वादे खोखले साबित हो रहे हैं ।
बटेश्वर ने विकास की उम्मीदें तब भी पालीं, जब अटल विदेश मंत्री से लेकर प्रधानमंत्री बने। ग्रामीण कहते हैं कि अटल जी पूरे देश को अपना गांव मानते थे, यही समझाते भी थे। उम्मीद थी कि देश के साथ उनके पैतृक गांव का भी विकास होगा। देश आगे बढ़ा भी, लेकिन गांव उसी हाल में रह गया।
बीते वर्ष 16 अगस्त को लंबी बीमारी के बाद बटेश्वर का ये लाल चिरनिद्रा में लीन हो गया। आठ सितंबर को यमुना में अटल की अस्थियां विसर्जित करने मुख्यमंत्री पहुंचे, तो तीर्थराज का भांजा कहे जाने वाले बटेश्वर को लेकर कई घोषणाएं कीं। अटल के परिजनों से लेकर पूरे गांव ने फिर सपने सजाए।
तमाम वादे सरकार ने किए, तो तमाम मांगें ग्र्रामीणों के जेहन में रहीं। उम्मीद बंधी, खुद सीएम आए हैं, तो जल्द बटेश्वर में जल्द विकास का नया अध्याय लिखा जाएगा। अटल के जन्मदिन 25 दिसंबर पर विकास योजनाओं के शिलान्यास होने की आस भी बंधी। लेकिन योजनाओं पर ही अमल नहीं हो सका। दस करोड़ रुपये के प्रस्ताव बनाकर शासन-प्रशासन को भेजे गए, लेकिन आज तक धनराशि ही जारी नहीं हो सकी। हां, संवरने के नाम पर कुछ हुआ तो अटल की खंडहर हो चुकी पैतृक हवेली को जाने वाला करीब 50 मीटर रास्ता। अटल के परिवार के भतीजे राकेश वाजपेयी और अश्वनी वाजपेयी कहते हैं कि सपने दिखाए गए, लेकिन साकार करना भूल गए। आज तक विकास की बाट जोह रहे हैं, लेकिन हुआ कुछ नहीं।
बटेश्वर नाथ के मुख्य पुजारी जय प्रकाश गोस्वामी प्रशासनिक अनदेखी से काफी नाराज दिखे ।
अफसरों की लापरवाही का एक उदाहरण ये भी है। बटेश्वर के घाट, इंटरलॉकिंग और पार्क में झूले लगाने के लिए 3 करोड़ 60 लाख 72 हजार रुपये स्वीकृत हुए। मार्च में 90.18 लाख जारी भी कर दिए गए। आज तक अफसर काम शुरू नहीं करा पाए। अटल की पैतृक हवेली में 60 वर्गगज में अटल के संस्मरण संजोने के लिए स्मारक और संग्रहालय साकार करना भूल गए।