
मगर उन जवानों का कुछ सामान जरूर मलबे के नीचे से मिला है। इस ऑपरेशन से विमान के साथ लापता जवानों के परिजनों को भी बड़ी आस बंधी है कि शायद उन्हें अपनों के बर्फ में दफन शव दशकों बाद मिल सके। उधर, इस ऑपरेशन के दौरान सेना की विशेष टीम ने ग्लेशियर में संबंधित इलाके की पूरी मैपिंग भी की है, ताकि भविष्य में इस सर्च ऑपरेशन को आगे बढ़ाया जा सके।
यह सर्च ऑपरेशन वेस्टर्न कमांड की निगरानी में चलाया जा रहा है। 26 जुलाई को ट्रिपीक बिग्रेड के डोगरा स्काउट्स के जवानों की विशेष टीम रोहतांग पास से बहुत ऊपर ढाका ग्लेशियर में बातल रोड हेड (13,400 फीट) के लिए रवाना हुई थी। टीम ने अपना सर्च अभियान का पहला चरण 3 अगस्त को शुरू किया था, जो 18 अगस्त को संपन्न हुआ। यह सर्च अभियान हवाई दुर्घटना स्थल (17,292 फीट) तक चलाया गया।
टीम ने इस ग्लेशियर में 80 डिग्री तक ढाल वाली दुर्गम चोटियों पर जवानों के शव और दुर्घटनाग्रस्त जहाज के मलबे की तलाश की। एयर फोर्स ने 6 अगस्त को सेना का यह सर्च ऑपरेशन ज्वाइन किया और विशेष टीम के सदस्यों को बर्फ के नीचे दबे विमान के मलबे को पहचानने में मदद की। बता दें कि 7 फरवरी 1968 में एयरफोर्स के एन-12 (बीएल-534) को 97 जवानों को चंडीगढ़ से लेह में छोड़कर आने का टास्क मिला था।
जवानों के अलावा विमान में 4 क्रू-मेंबर्स भी थे। लेह पहुंचने के बाद अचानक मौसम खराब हो गया और पायलट को तुरंत प्रभाव से चंडीगढ़ वापस लौटने के आदेश हुए। विमान जब लेह से वापस चंडीगढ़ आ रहा था तो अचानक रोहतांग दर्रे के ढाका ग्लेशियर के पास गायब हो गया। उस वक्त सिर्फ 5 जवानों के शव ही मिले थे।
सर्च अभियान के दौरान अब एएन-12 एयरक्राफ्ट का एरो इंजन, फ्यूस्लेज, इलेक्ट्रिक सर्किट, प्रोपेलर, फ्यूल टैंक यूनिट, एयर ब्रेक असेंबली, विमान का कॉकपिट डोर समेत विमान में सवार जवानों का कुछ सामान बर्फ के नीचे से बरामद हुआ है।
इस दुर्गम ग्लेशियर में बर्फ की बहुत मोटी परतों और खराब मौसम ने इस सर्च ऑपरेशन को बेहद जोखिम भरा और खतरनाक बना दिया था। लेकिन टीम सदस्यों का हौसला ही है, जिसके बूते 51 साल बाद बर्फ में दफन यह मलबा आज बाहर आ पाया है।
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