उच्चतम न्यायालय ने देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाने के महाराष्ट्र के राज्यपाल के निर्णय को चुनौती देने वाली शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस की याचिका पर केंद्र और महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी किए। न्यायमूर्ति एन वी रमन, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने फडणवीस और उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले अजित पवार को भी नोटिस जारी किए। पीठ ने आदेश पारित करने के लिए सॉलिसिटर जनरल से सोमवार सुबह साढ़े दस बजे राज्यपाल के पत्र पेश करने को कहा।
वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी कुछ भाजपा और निर्दलीय विधायकों की ओर से न्यायालय में पेश हुए। उन्होंने कहा कि यह याचिका बंबई उच्च न्यायालय में दायर होनी चाहिए। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसमें दो राय नहीं है कि शक्ति परीक्षण बहुमत साबित करने का सबसे अच्छा तरीका है। रोहतगी ने कहा कि कैसे कोई राजनीतिक पार्टी मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के लिए अनुच्छेद 32 के तहत न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकती है। सिंघवी ने इस दौरान उत्तराखंड में कांग्रेस सरकार की बर्खास्तगी जैसे मामलों का हवाला देते हुए कहा कि सदन में शक्ति परीक्षण ही सर्वश्रेष्ठ है। उन्होंने कर्नाटक मामले में न्यायालय के 2018 के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि शक्ति परीक्षण का आदेश दिया गया था और कोई गुप्त मतदान नहीं हुआ था। रोहतगी ने एनसीपी की याचिका का विरोध किया।
रोहतगी ने कहा, ‘मैं भाजपा के कुछ विधायकों की तरफ से पेश हुआ हूं। यह राज्यपाल का विशेषाधिकार है। इसकी सुनवाई पहले उच्च न्यायालय में होनी चाहिए। रविवार को सुनवाई की जरुरत नहीं थी। किसी भी राजनीतिक पार्टी को अपील करने का अधिकार नहीं है। यहां सभी अपीलकर्ता पार्टियां हैं। पहले किसी भी केस में ऐसा नहीं हुआ है। कल प्रोटेम स्पीकर की शपथ, विधायकों की शपथ और फिर राज्यपाल के संक्षिप्त भाषण के बाद बहुमत परीक्षण करवाया जा सकता है।’
रोहतगी ने पीठ से कहा कि तीनों पार्टियों को समय दिया गया था लेकिन उन्होंने सरकार नहीं बनाई, इसलिए फडणवीस को बहुमत साबित करने दें क्योंकि कोई जल्दबाजी नहीं है।
