राजस्थान (Rajasthan ) के जनपद भरतपुर (Bharatpur ) के डीग (Deeg) में हुए बहुचर्चित राजा मान सिंह हत्याकांड( Raja Man singh Murder Case) में उत्तर प्रदेश की मथुरा ( Mathura) जिला अदालत ने बुधवार को फैसला सुनाया। इस मामले में तत्कालीन पुलिस उपाधीक्षक समेत दोषी पाए गए 11 पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की सजा दी गई है। वहीं एक केस में आरोपी तीन लोगों को बरी कर दिया गया है।
मंगलवार को मथुरा ( Mathura) की जिला एवं सत्र न्यायाधीश साधना रानी ठाकुर ने मामले की सुनवाई पूरी करने के बाद पुलिस उपाधीक्षक कानसिंह भाटी सहित 11 आरोपियों को दोषी करार दिया गया था। चार्जशीट में आरोपी बनाए गए 18 पुलिसकर्मियों में से डीएसपी कानसिंह भाटी के चालक कॉन्स्टेबल महेंद्र सिंह को पूर्व में ही बरी किया जा चुका था तथा तीन अन्य आरोपी सिपाही नेकीराम, सीताराम व कुलदीप सिंह की मुकदमे की सुनवाई के दौरान ही मृत्यु हो चुकी है।
कोर्ट ने डीएसपी कानसिंह भाटी, थानाध्यक्ष वीरेंद्र सिंह, राजस्थान सशस्त्र बल के हेड कान्स्टेबल जीवन राम, हेड कॉन्स्टेबल भंवर सिंह, सिपाही हरी सिंह, शेर सिंह, छतर सिंह, पदमा राम, जगमोहन व डीग थाने के दूसरे अफसर इंस्पेक्टर रविशेखर मिश्रा और सिपाही सुखराम को उम्र कैद की सजा सुनाई है। पुलिस अधीक्षक कार्यालय में तैनात अपराध सहायक निरीक्षक कानसिंह सीरवी, हेड कॉन्स्टेबल हरिकिशन व सिपाही गोविंद प्रसाद को निर्दोष करार दिया है।
इन पुलिसकर्मियों ने 21 फरवरी 1985 को हुई मुठभेड़ में सात बार के निर्दलीय विधायक राजा मान सिंह( Raja Man singh Murder Case ) समेत दो अन्य लोगों की हत्या कर दी थी। इस मामले में 18 पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कराया गया था। इनमें तीन की मौत हो चुकी है। चार बरी हो गए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इस मुकदमे की सुनवाई मथुरा जिला जज की अदालत में हो रही थी।
35 साल के लंबे इंतजार के बाद राजा मान सिंह हत्या मामले ( Raja Man singh Murder Case) में आखिरकार बुधवार को इंसाफ हुआ। 11 पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया गया और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। यह एक ऐसा मामला था, जिसने राजस्थान की राजनीति में एक तरह से भूचाल ला दिया था। मौजूदा विधायक के एनकाउंटर का भी संभवत: यह पहला ही मामला था।
भरतपुर रियासत के राजा मान सिंह ( Raja Man singh) का जन्म 1921 में हुआ था। राजा मान सिंह बहुत ही स्वाभिमानी व्यक्ति थे। कहा जाता है कि उन्हें आम जनता के बीच रहना ज्यादा पसंद था। ब्रिटेन से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी।
फिर अंग्रेजी शासन में सेना में सेकंड लेफ्टिनेंट भी हो गए। उस समय भरतपुर में लोग देश के साथ रियासत का भी झंडा लगाते थे। बस इसी बात पर अंग्रेजों से ठन गई। नौकरी छोड़ी और राजनीति में आ गए।
देश आजाद होने के बाद राजा मान सिंह ने भी राजनीति में कदम रखे। मगर कांग्रेस का साथ उन्हें मंजूर नहीं था। इसलिए निर्दलीय ही चुनाव लड़े। डीग विधानसभा सीट से 1952 से 1984 तक सात बार निर्दलीय विधायक चुने गए। कांग्रेस से इस बात पर समझौता था कि उनके खिलाफ उम्मीदवार भले ही उतारें, लेकिन कोई बड़ा नेता प्रचार के लिए नहीं आएगा। 1977 में जेपी लहर और 1980 की इंदिरा लहर में भी वह चुनाव जीते।
राजा मान सिंह को कांग्रेस की ओर से मिला यह धोखा नागवार गुजरा। सीएम की रैली से पहले ही उन्होंने मंच को तुड़वा डाला। इसके बाद वह जोंगा जीप लेकर उस हेलीपैड की ओर बढ़े, जहां सीएम का हेलीकॉप्टर आना था। गुस्से से लाल राजा मान सिंह ने वहां खड़े हेलीकॉप्टर को कई बार टक्कर मारी। मजबूरी में मुख्यमंत्री माथुर को सड़क से जयपुर रवाना होना पड़ा। उपद्रव की आशंका के चलते कर्फ्यू लगाना पड़ा। साथ ही मान सिंह के खिलाफ केस दर्ज किया गया।
ऐसा करके उन्होंने सीधे सरकार को ललकारा था। 21 फरवरी को वह घर से बाहर निकलने लगे, तो लोगों ने मना किया कि कर्फ्यू है, मत जाइए। उन्होंने कहा कि अपनी रियासत में कैसा डर। हालांकि राजा मान सिंह के परिजनों का कहना है कि वह आत्मसमर्पण करने जा रहे थे। रास्ते में पुलिसकर्मियों ने उन पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। इस घटना में उनके साथ मौजूदा बाकी दोनों लोग भी मारे गए।इस घटना के बाद पूरा भरतपुर जल उठा। दो दिन बाद ही मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा। जांच सीबीआई को सौंपी गई।
इस बहुचर्चित हत्याकांड की सुनवाई के दौरान 1700 तारीखें पड़ीं और 25 जिला जज बदल गए। वर्ष 1990 में यह केस मथुरा जिला जज की अदालत में स्थानांतरित किया गया था। कुल 78 गवाह पेश हुए, जिनमें से 61 गवाह वादी पक्ष ने तो 17 गवाह बचाव पक्ष ने पेश किए।