सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया पर अपील करने वाले लोगों के खिलाफ कोई राज्य कार्रवाई नहीं कर सकता। सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court) ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि सोशल मीडिया ( Social Media ) पर इस संकट के समय लोगों द्वारा अपील करने पर कोई भी राज्य उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती या कोई कार्रवाई नहीं कर सकती।
सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court) में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़( Justice DY Chandrachud ) के नेतृत्व वाली तीन जजों की पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि यदि नागरिक सोशल मीडिया और इंटरनेट पर अपनी शिकायत दर्ज कराते हैं तो इसे गलत जानकारी नहीं कहा जा सकता है।’
सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court) ने आगे कहा, ‘हम नहीं चाहते कि किसी जानकारी पर रोकथाम या नियंत्रण के लिए कड़ी कार्रवाई की जाए। अगर ऐसी शिकायतों पर कार्रवाई के लिए विचार किया गया तो इसे कोर्ट की अवमानना माना जाएगा। सभी राज्यों और डीजीपी को एक कड़ा संदेश जाना चाहिए। किसी भी जानकारी पर शिकंजा कसना मूल आचरण के विपरीत है।’
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को उत्तर प्रदेश सरकार के हालिया ऐक्शन से जोड़कर देखा जा रहा है जिसमें सोशल मीडिया ऑक्सिजन की गुहार लगाने वाले एक युवक के खिलाफ केस दर्ज किया गया था।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हमें अपने नागरिकों की आवाज सुननी चाहिए और न कि उनकी आवाज को दबाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि यह बात सभी राज्यों और डीजीपी को समझ जानी चाहिए। जस्टिस डी वाई चंद्रचूण ने कहा कि हम स्पष्ट करना चाहते हैं कि अगर नागरिक अपनी शिकायतें और सूचनाएं सोशल मीडिया और इंटरनेट पर शेयर करते हैं तो इसे गलत नहीं कहा जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को कोरोना महामारी केंद्र द्वारा उठाए गए कदमों को लेकर सुनवाई की गई। मामले की अगली सुनवाई के लिए 10 मई की तारीख निर्धारित की गई है। आज हुए सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र से टेस्टिंग, ऑक्सीजन व वैक्सीनेशन को लेकर उठाए गए कदमों से जुड़े सवाल तो किए ही साथ ही सोशल मीडिया पर दर्द बयां कर रहे लोगों व डॉक्टर व नर्स का भी मुद्दा उठाया।
सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि केंद्र सरकार 100 फीसदी टीकों की खरीद क्यों नहीं करती। इसे राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के मॉडल पर राज्यों को वितरित क्यों नहीं करती, ताकि वैक्सीन की दामों में अंतर न रहे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आखिरकार यह देश के नागरिकों के लिए है।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हमारे सामने कुछ ऐसी भी याचिकाएं दायर की गई हैं, जो गंभीर रूप से स्थानीय मुद्दो को उठाती है। उन्होंने आगे कहा कि ऐसे मुद्दों को उच्च न्यायालय में उठाया जाना चाहिए। वही पीठ ने सवाल किया कि अनपढ़ या जिनके पास इंटरनेट एक्सेस नहीं है, वे कैसे वैक्सीन लगवाएंगे।
इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि क्या भारत में ऑक्सीजन की उपलब्धता पर्याप्त है जबकि प्रति दिन 8500 मीट्रिक टन की औसत मांग है। इसके जवाब में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 10,000 मीट्रिक टन ऑक्सीजन दैनिक आधार पर उपलब्ध है। ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है। लेकिन कुछ राज्यों द्वारा कम ऑक्सीजन लेने के कारण कुछ क्षेत्रों में उपलब्धता कम हो जाती है।