इलाहाबाद हाईकोर्ट ( Allahabad High Court )की लखनऊ खंडपीठ ने मायावती के शासनकाल में हुए स्मारक व पार्क घोटाले ( Monument scam )मामले में पत्थर सप्लायर अंकुर अग्रवाल के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि पहली नजर में इस मामले में विवेचना के पर्याप्त आधार हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ( Allahabad High Court )की लखनऊ पीठ में न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति विकास कुंवर श्रीवास्तव की खंडपीठ ने यह आदेश अंकुर अग्रवाल की याचिका पर दिया। याची ने प्राथमिकी को रद्द करने की गुजारिश की थी।
याची का कहना था कि उसे लखनऊ व नोएडा में स्मारक व पार्क के निर्माण के लिए गुलाबी बलुई पत्थर की सप्लाई का ठेका दिया गया था। वर्ष 2007 से 2011 के बीच पत्थरों की सप्लाई की गई और सब कुछ ठीक रहा। पर, राज्य में नई सरकार आने के बाद निर्माण कार्यों की जांच लोकायुक्त को सौंप दी गई। लोकायुक्त की रिपोर्ट के आधार पर वर्ष 2014 में गोमती नगर थाने में गबन व भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।
याची की ओर से दलील दी गई कि याची पर खराब गुणवत्ता के या अधिक कीमत के पत्थर सप्लाई के आरोप नहीं हैं। उसे राजनीतिक कारणों से फंसाया जा रहा है।उधर, राज्य सरकार के अधिवक्ता ने याचिका का विरोध करते हुए दलील दी कि मामले में सरकारी अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की संस्तुति तक दी जा चुकी है। ऐसे में वर्तमान याचिका पर कोई राहत नहीं दी जानी चाहिए।
इस पर ( Allahabad High Court ) ने कहा कि यह सरकारी खजाने से 1410 करोड़ 50 लाख 63 हजार 200 रुपये के गबन का मामला है। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि याची के खिलाफ पहली नजर में कोई मामला नहीं बनता है। लिहाजा प्राथमिकी को रद्द करने का कोई तर्क संगत आधार नहीं है। इस टिप्पणी के साथ अदालत ने याचिका खारिज कर दी।