पश्चिम बंगाल ( West Bengal) विधानसभा ने राज्य विधान परिषद ( Legislative Council ) के गठन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। 18 मई को तीसरी बार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री की शपथ लेने के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ( Mamata Banerjee ) ने राज्य विधानसभा के उच्च सदन विधान परिषद बनाने के कैबिनेट के फैसले को मंजूरी दी थी।राज्य सरकार की मंशा विधानसभा के रास्ते ममता बनर्जी की मुख्यमंत्री की गद्दी कायम रखने की है।गौरतलब है कि बंगाल में 294 सदस्यीय विधानसभा है, लेकिन राज्य में विधान परिषद की व्यवस्था नहीं है।
विधानसभा में प्रस्ताव के समर्थन में 196 वोट पड़े और विरोध में 69। विधानसभा में पारित प्रस्ताव को अब मंजूरी के लिए केंद्र के पास भेजा जाएगा। केंद्र की हरी झंडी के बाद ही इसका गठन हो सकेगा। बीते दिनों ममता बनर्जी ने घोषणा की थी कि जिन बुद्धिजीवियों और दिग्गज नेताओं को विधानसभा चुनाव के लिए नामांकित नहीं किया गया था, उन्हें विधान परिषद ( Legislative Council ) का सदस्य बनाया जाएगा। सीएम ने 2011 के विधानसभा चुनावों के बाद नंदीग्राम और सिंगूर में उनके अभियान का हिस्सा रहने वालों को विधान परिषद में भेजने का वादा किया था।
बता दें कि पश्चिम बंगाल में भले ही आज विधान परिषद ( Legislative Council ) के लिए प्रस्ताव पास किया गया, लेकिन पांच दशक पहले राज्य में विधान परिषद होती थी। दरअसल, 1935 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने बंगाल को दो सदनों में बांटा था। इसमें विधान परिषद और विधानसभा शामिल थे। विधानसभा का कार्यकाल पांच साल का तय किया गया, जिसके सदस्यों की संख्या 250 थी। वहीं, विधान परिषद में सदस्यों की संख्या 63 से 65 तक रखी गई। हर तीन साल बाद एक तिहाई सदस्यों का कार्यकाल खत्म होता था। आजादी के बाद 1952 में बंगाल में विधानसभा और विधान परिषद की व्यवस्था बरकरार रखी गई। उस दौरान 5 जून 1952 को विधान परिषद का गठन किया गया, जिसमें सदस्यों की संख्या 51 कर दी गई। दरअसल, उस वक्त विधानसभा में 240 सदस्य होते थे। हालांकि, 21 मार्च 1969 को राज्य विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित किया, जिसके आधार पर केंद्र सरकार ने 1 अगस्त 1969 को पश्चिम बंगाल विधान परिषद को समाप्त कर दिया।