Friday, September 20, 2024

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Uttar Pradesh : बरेली का 42 साल पुराना सिंडिकेट बुक हाउस बंद हुआ,आखिरी दिन विदाई देने आए लोग रो पड़े 

Bareilly’s landmark Syndicate Book House

Bareilly’s landmark Syndicate Book Houseऑनलाइन इंटरनेट युग में  (   का 42 साल पुराना सिंडिकेट बुक हाउस (Syndicate book house ) गुम हो गया, शुक्रवार कों एक सुनहरा अतीत पीछे छोड़ने के साथ अपने हजारों चाहने वालों के लिए यह बुक हाउस ताले लगने के साथ इतिहास बन गया। हालांकि इससे पहले दिन भर पुस्तक प्रेमियों का तांता लगा रहा। आखिरी विदाई देने आए कई लोग अपनी भावनाओं पर भी काबू नहीं रख सके और उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े।

सिंडिकेट बुक हाउस (Syndicate book house )से भावनात्मक लगाव रखने वाले लोगों में चार दिन पहले उसकी बंदी की घोषणा करने के बाद किस कदर बेचैनी का माहौल था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसके बाद से ही उनकी लगातार इस बुक हाउस पर आवाजाही बनी हुई थी। इन चंद दिनों में ही बुक हाउस पर मौजूद ज्यादातर स्टॉक बिक गया। तमाम लोग आखिरी यादगार के तौर पर यहां से किताबें ले गए।

शुक्रवार को लोगों की और भी ज्यादा आवाजाही रही। बरसों पुराने रिश्ते को आखिरी बार निभाने आए लोगों ने अपने-अपने ढंग से बुक हाउस को अलविदा कहा। कोई बुक हाउस की मालकिन संतोष वर्मा के लिए बुके लेकर पहुंचा तो किसी ने यहां केक काटकर आखिरी विदाई को यादगार बनाया। कुछ लोगों की भावनाएं आंसुओं की शक्ल में भी छलक पड़ीं।

फिर बता दें कि सिंडिकेट बुक हाउस (Syndicate book house )की स्थापना संतोष वर्मा और उनके पति आरजी वर्मा ने 1979 में की थी। समय के साथ इस बुक हाउस ने सिर्फ बरेली नहीं बल्कि आसपास के तमाम शहरों में हजारों लोगों के दिलों में जगह बनाई। सिंडिकेट पर साहित्य के बड़े नामों के साथ हर बड़े लेखक की किताबें उपलब्ध रहती थीं।

इस कारण यहां हर वर्ग का पुस्तकप्रेमी पहुंचता था। सेना के अफसरों की भी यह पसंदीदा जगह थी। उनके लिए बुक हाउस में अलग सेक्शन था। एक सेक्शन बच्चों के लिए भी था जहां उन्हें पढ़ने के लिए मुफ्त कॉमिक्स भी उपलब्ध रहती थीं। हाल के कुछ सालों में ऑनलाइन माध्यमों का चलन शुरू होने के बाद किताबों की लोकप्रियता कम हुई तो सिंडिकेट के सामने भी मुश्किलें खड़ी होने लगी थीं।

संतोष वर्मा ने कहा, “2020 की शुरुआत में पहले लॉकडाउन के दौरान, किताबों की मांग में एक अस्थायी पुनरुत्थान हुआ था।” “लेकिन आम तौर पर, ज्यादातर अंडर -30 ने अपने फोन पर पढ़ने की आदत डाल ली है। यह भौतिक किताबों की दुकानों के लिए एक बुरा परिदृश्य है। हाल के वर्षों में पढ़ने और साहित्यिक प्रशंसा की संस्कृति पूरी तरह से बदल गई है।” अब, लोग स्टोर पर पुस्तकों के शीर्षकों की खुलेआम फोटो खींचने के लिए आते हैं ताकि वे उन्हें ऑनलाइन सस्ते में प्राप्त कर सकें।

 

 

Raju Upadhyay

Raju Upadhyay is a veteran journalist with experience of more than 35 years in various national and regional newspapers, including Sputnik, Veer Arjun, The Pioneer, Rashtriya Swaroop. He also served as the Managing Editor at Soochna Sahitya Weekly Newspaper.