देशभर के हाईकोर्ट में जजों के रिक्त पद भरने के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम (Supreme Court Collegium ) ने केंद्र सरकार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ( Allahabad High Court ) के 16 सहित 12 हाईकोर्ट के लिए 68 जजों को नियुक्त करने के लिए नाम भेजे हैं।
चीफ जस्टिस एनवी रमण की अध्यक्षता वाले सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम (Supreme Court Collegium )ने शुक्रवार को एक अभूतपूर्व फैसला लेते हुए एक साथ 68 नामों की सिफारिश केंद्र सरकार को भेजी। इससे इलाहाबाद, राजस्थान और कलकत्ता समेत इन सभी 12 हाईकोर्ट में रिक्त पदों के कारण बड़ी संख्या में लंबित हो रहे मुकदमों की परेशानी दूर हो पाएगी।
सूत्रों के मुताबिक, चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस एएम खानविलकर की मौजूदगी वाली तीन सदस्यीय कॉलेजियम की तरफ से भेजे गए नामों में मिजोरम ( Mizoram )से पहली बार एक महिला न्यायिक अधिकारी मार्ली वानकुंग का नाम भी शामिल है, जिन्हें गुवाहाटी हाईकोर्ट में जज बनाए जाने की सिफारिश केंद्र सरकार से की गई है। मार्ली अनुसूचित जनजाति समुदाय से आती हैं। सूत्रों का कहना है कि मार्ली के अलावा भी विभिन्न हाईकोर्ट में जज के तौर पर नियुक्त किए जाने के लिए 9 अन्य महिला न्यायिक अधिकारियों को नामित किया गया है।
कॉलेजियम (Supreme Court Collegium )ने 25 अगस्त और 1 सितंबर को दो बार बैठक करते हुए 112 उम्मीदवारों को हाईकोर्ट में जज के तौर पर नामित करने योग्य माना है। सूत्रों ने बताया कि इनमें से 68 उम्मीदवारों के नाम को 12 हाईकोर्ट के लिए हरी झंडी दिखा दी गई है। इनमें से 44 बार से आते हैं, जबकि 24 न्यायिक सेवा में कार्यरत हैं। केंद्र से मंजूरी मिलने के बाद ये 68 जज इलाहाबाद, राजस्थान, कलकत्ता, झारखंड, जम्मू-कश्मीर, मद्रास, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब व हरियाणा, केरल, छत्तीसगढ़ और असम हाईकोर्ट में नियुक्त किए जाएंगे।
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने इलाहाबाद हाईकोर्ट ( Allahabad High Court ) के 16 नए न्यायाधीशों की नियुक्ति की संस्तुति की है। इनमें से 13 अधिवक्ता और 3 न्यायिक सेवा से है। अधिवक्ता से नियुक्त होने वालों में चंद्र कुमार राय, शिशिर जैन, कृष्ण पहल, समीर जैन, आशुतोष श्रीवास्तव, सुभाष विद्यार्थी, बृजराज सिंह, श्री प्रकाश सिंह, विकास बुधवार, विक्रम डी चौहान, रिशद मुर्तजा, ध्रुव माथुर व विमलेंदु त्रिपाठी और न्यायिक सेवा से ओमप्रकाश त्रिपाठी, उमेश चंद्र शर्मा व शैयद वैज मियां शामिल हैं। न्यायिक सेवा की संस्तुति पुनर्विचार के लिए की गई है।