राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ( Mohan Bhagwat) ने मंगलवार को एक कार्यक्रम में वीर सावरकर के आलोचकों को निशाने पर लिया और कहा कि उन्हें बदनाम करने की मुहिम आजादी के बाद से ही शुरू हो गई थी।
उदय माहुरकर और चिरायु पंडित की लिखी किताब ‘वीर सावरकर- द मैन हू कैन्ड प्रिवेंटेड पार्टिशन’ के विमोचन के इस कार्यक्रम में केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी शामिल हुए।उन्होंने कहा कि देश में वर्तमान समय में सावरकर के बारे में सही जानकारी की कमी है। सावरकर के बारे में लिखी गईं तीन किताबों से उनको ठीक से जाना जा सकता है।
मोहन भागवत ( Mohan Bhagwat)ने कहा कि देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद से ही वीर सावरकर को बदनाम करने की मुहिम शुरू हो गई थी। दरअसल, निशाना कोई व्यक्ति नहीं था बल्कि राष्ट्रवाद था। अब इसके बाद बदनाम करने की यह मुहिम स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती और योगी अरविंद जैसों के खिलाफ भी चलाई जाएगी, क्योंकि वीर सावरकर इन तीनों के ही विचारों से काफी प्रभावित थे।
संघ प्रमुख ने कहा कि सावरकर का हिंदुत्व, विवेकानंद का हिंदुत्व… ऐसा कहने का फैशन सा हो गया है। हिंदुत्व एक ही है, जो शुरुआत से है और अंत तक वही रहेगा। जो भारत का है वो भारत का ही है और उसकी सुरक्षा और प्रतिष्ठा भारत से ही जुड़ी है। लेकिन, विभाजन के समय पाकिस्तान चले गए मुसलमानों के साथ ऐसा नहीं है।

आरएसएस प्रमुख डॉ. मोहन भागवत( Mohan Bhagwat)ने कहा, “भारतीय परंपरा धर्म से जुड़ती है, ये परंपरा उठाने वाली है न कि बिखेरने वाली। कुल मिलाकर ऐसे समझें कि भारतीय धर्म मानवता है। जो भारत का है, उसकी सुरक्षा और प्रतिष्ठा भारत से जुड़ी है।”
कार्यक्रम में मौजूद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि वीर सावरकर महान स्वतंत्रता सैनानी थे। राष्ट्र निर्माण में उनके योगदान को अनदेखा करना उनको अपमानित करने जैसा है।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह(Defence Minister Rajnath Singh ) ने कहा कि सावरकर महानायक थे, हैं और रहेंगे। उन्हें विचारधारा के चश्मे से देखने वालों को माफ नहीं किया जा सकता। वे हिंदुत्व को मानते थे, लेकिन वह हिंदूवादी नहीं थे। राष्ट्रवादी थे। उनके लिए देश राजनीतिक इकाई नहीं, सांस्कृतिक इकाई था। 20वीं सदी के सबसे बड़े सैनिक व कूटनीतिज्ञ थे सावरकर।
राजनाथ सिंह ने आगे कहा कि सावरकर के बारे में एक झूठ फैलाया जाता है कि 1910 में आजीवन कारावास की सजा काट रहे सावरकर ने ब्रिटिश हुकूमत के सामने दया याचिका दी थी। जबकि, सच यह है कि उन्होंने महात्मा गांधी के कहने पर ऐसा किया था। यह एक कैदी का अधिकार था। आगे कहा कि आरएसएस के विचारक वीडी सावरकर ने भारत को मजबूत रक्षा और राजनयिक सिद्धांत के साथ प्रस्तुत किया। वह भारत के सबसे बड़े और पहले रक्षा मामलों के विशेषज्ञ थे।
सावरकर जी का हिन्दुत्व, विवेकानंद का हिन्दुत्व ऐसा बोलने का फैशन हो गया, हिन्दुत्व एक ही है, वो पहले से है और आखिर तक वो ही रहेगा। सावरकर जी ने परिस्थिति को देखकर इसका उद्घोष जोर से करना जरूरी समझा: वीर सावरकर पर पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख pic.twitter.com/4oJZ3HfXBD
— ANI_HindiNews (@AHindinews) October 12, 2021
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#WATCH | Lies were spread about Savarkar. Time & again, it was said that he filed mercy petitions before British Govt seeking his release from jail… It was Mahatma Gandhi who asked him to file mercy petitions: Defence Minister Rajnath Singh at launch of a book on Savarkar y’day pic.twitter.com/Pov4mI0Ieg
— ANI (@ANI) October 13, 2021