मध्यप्रदेश ( Madhya Pradesh ) के इंदौर (Indore) में शनिवार शाम एक जैन मुनि आचार्य श्री 108 विमद सागर( Jain Saint Shri 108 Vimad Sagar Maharaj ) ने परदेशीपुरा इलाके में एक धर्मशाला के अंदर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। जानकारी के मुताबिक, वह चातुर्मास के सिलसिले में इंदौर आए थे। पुलिस इस मामले में अन्य जानकारी जुटा रही है। इस घटना के बाद जैन समाज के सैकड़ों श्रद्धालु मौके पर जमा हो गए। आत्महत्या के कारणों का अभी खुलासा नहीं हुआ है।
पुलिस के अनुसार नंदा नगर में जैन मंदिर के नजदीक एक धर्मशाला में जैन मुनि विमद सागर ( Jain Saint Vimad Sagar Maharaj )रुके हुए थे। लेकिन यहां उन्होंने फांसी लगाकर जान दे दी। घटना की जानकारी मिलने के बाद परदेशीपुरा थाना प्रभारी सहित अन्य अधिकारी मौके पर पहुंच गए। मौके पर एफएसएल की टीम सहित जैन समाज के कई लोगों का तांता लग गया।
बताया जा रहा है कि जैन मुनि तीन दिन पहले नंदा नगर रोड नंबर-3 स्थित श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर संत सदन में चतुर्मास के दौरान आए थे। कल दोपहर को वे विहार के लिए गुमास्ता नगर जाने वाले थे। इससे पहले उनके सेवादार अनिल जैन ने संत सदन में बने एक कमरे में पंखे पर रस्सी के सहारे उनका शव लटका देखा, तो आसपास के लोगों को इकट्ठा किया।
मौके पर पुलिस भी पहुंची। आचार्य के मौत की खबर मिलते हैं जैन समाज के कई लोग मौके पर पहुंचे। आला अफसरो ने भी मौके पर पहुंचकर मामले की जांच शुरू कर दी। फिलहाल जिस कमरे में उन्होंने फांसी लगाई उसे सील कर दिया गया है। अधिकारियों का कहना है कि मामला आत्महत्या का लगता है।
पाश्वनार्थ दिगंबर जैन मंदिर नंदानगर प्रबंधन से मिली जानकारी के मुताबिक आचार्य विमद सागर महाराज ( Jain Saint Vimad Sagar Maharaj )27 अक्टूबर को एरोड्रम क्षेत्र के लीड्स से नंदानगर स्थित मंदिर आए थे। यहां रोजाना सुबह 9 से 10 बजे तक उनके प्रवचन होते थे। इसके बाद वे एक दिन छोड़कर आहारचर्या करते थे। शनिवार को भी वे आहारचर्या पर गए थे। दोपहर करीब ढाई बजे सामयिक के लिए पहुंचे। शाम को समाजजनों को घटना का पता चला।
आचार्य श्री 108 विमद सागर जी महाराज ( Jain Saint Vimad Sagar Maharaj ) का गृहस्थावस्था में संजय कुमार जैन नाम था। मूलत: सागर जिले के शाहगढ़ के रहने वाले थे। जन्म 9 नवंबर 1976 को हुई। मां का नाम श्रीमती सुशीला जैन और पिता शीलचंद जैन हैं। पिता मलेरिया इंस्पेक्टर रह चुके हैँ। वह 9वीं शिक्षा ग्रहण की थी। उन्होंने 8 अक्टूबर 1992 में आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत लिया। उन्होंने आचार्य श्री विराग सागर जी महाराज से क्षुल्लक दीक्षा 28 जनवरी 1996 में सागर के मंगलगिरि में ली थी। इसके बाद ऐलक दीक्षा 28 जून 1998 को शिकोहाबाद के शोरीपुर में ली। 14 सितंबर 1998 को भिंड के बरासो में विराग सागर जी महाराज से मुनि दीक्षा भी ग्रहण की।