सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court) ने अधिकारियों को बेहद अहंकारी करार देते हुए उत्तर प्रदेश सरकार की अपील शनिवार को खारिज कर दी और अब राज्य के वित्त सचिव और अतिरिक्त मुख्य सचिव (राजस्व) की गिरफ्तारी का रास्ता साफ कर दिया। इलाहाबाद हाई हाई कोर्ट ने आदेशों के विलंबित और आंशिक अनुपालन के लिए जमानती वारंट जारी किया।
वहीं, अब शीर्ष अधिकारियों को गिरफ्तार होने से बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court) पहुंची राज्य सरकार को राहत नहीं मिल सकी। प्रधान न्यायाधीश एन वी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने फटकार लगाते हुए कहा, ‘आप इस सब इसी के लायक हैं और इससे भी ज्यादा के हैं।’
‘आप इस मामले में यहां क्या बहस कर रहे हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट को अब तक गिरफ्तारी का आदेश देना चाहिए था। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court) ने कहा कि हमें लगता है कि और अधिक कड़ी सजा देने की आवश्यकता थी। हाई कोर्ट आपके साथ नरम रुख बनाए हुए था। अपने आचरण को देखें। आपने आदेशों का पालन करने के लिए कुछ नहीं किया। हाई कोर्ट आप पर बहुत दयालु रहा है। आपके पास अदालत के लिए कोई सम्मान नहीं है। यह अतिरिक्त मुख्य सचिव बहुत अहंकारी प्रतीत होता है।’
मामला इलाहाबाद में एक संग्रहण अमीन को सेवा नियमित करने और बकाया भुगतान से संबंधित है। हाई कोर्ट ( Allahabad High Court ) ने 1 नवंबर को पाया कि अधिकारी अदालत को खेल का मैदान मान रहे हैं और उन्होंने उस व्यक्ति को वेतन का बकाया देने से इनकार कर दिया है जिसे पहले सेवा के नियमितीकरण के सही दावे से वंचित किया गया था।
अदालत ने कहा- चूंकि प्रतिवादियों (अधिकारियों) ने जानबूझकर अदालत को गुमराह किया है और याचिकाकर्ता को बकाया वेतन नहीं देने में अतिरिक्त महाधिवक्ता द्वारा दिए गए वादे का उल्लंघन किया है, यह न्यायालय प्रतिवादियों के निंदनीय आचरण के बारे में व्यथा और पीड़ा को दर्ज करता है। कोर्ट मानता है कि अतिरिक्त मुख्य सचिव (राजस्व) और संजय कुमार, तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट, वर्तमान में सचिव (वित्त) के खिलाफ जमानती वारंट जारी करने का सही मामला बनता है। इन्हें 15 नवंबर को इस न्यायालय के समक्ष पेश होने का आदेश देता है।