मुंबई -अहमदाबाद बुलेट ट्रेन( Bullet train) परियोजना से जुड़े एक मामले पर सुनवाई करते हुए ने सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court) अपनी टिप्पणी में कहा है कि एक द्विपक्षीय समझौते पर न्यायिक हस्तक्षेप करना ठीक नहीं है और ये राष्ट्रहित में भी नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस परियोजना से व्यापक जनहित होगा, इसलिए अगर इस प्रोजेक्ट में देरी होती है तो वो सही नहीं है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी दिल्ली हाईकोर्ट के एक आदेश को रद्द करते हुए दी।
आपको बता दें कि दिल्ली हाईकोर्ट ने नेशनल हाई स्पीड रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड को मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन ( Bullet train)परियोजना के संबंध में एक डिपो बनाने और विकास के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी मोंटेकार्लो लिमिटेड की बोली पर विचार करने का निर्देश दिया गया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना की बेंच ने इस आदेश को रद्द कर दिया है। आपको बता दें कि दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश अगस्त 2021 में आया था।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपने आदेश में कहा है कि मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन ( Bullet train)परियोजना राष्ट्रीय महत्व के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है। बेंच ने कहा है कि क्या मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में और इस तरह की विदेशी वित्त पोषित परियोजना के संबंध में हाईकोर्ट को “किसी विशिष्ट” आरोप के अभाव में निविदा प्रक्रिया में हस्तक्षेप करना उचित था? बेंच ने कहा कि इस तरह की परियोजनाओं में न्यायिक हस्तक्षेप होना परियोजना में देरी का कारण बनता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह की किसी मेगा परियोजना भारत जैसे विकासशील देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। ऐसे में इनमें देरी व्यापक जनहित और राष्ट्र हित में नहीं हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हाईकोर्ट को इस बात की सराहना करनी चाहिए थी कि हमेशा यह सलाह दी जाती रही है कि इस तरह की विदेशी फंडिंग वाली मेगा परियोजना में देरी का व्यापक प्रभाव हो सकता है।