सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court) ने इलाहाबाद हाईकोर्ट ( Allahabad High Court ) में 10 वर्षों से लंबित जमानत याचिका पर जमानत दे दी। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने आजीवन कारावास के दोषी रितु पाल को यह देखते हुए जमानत दे दी कि वह 14 साल से अधिक समय जेल में बिता चुका है और उसकी जमानत याचिका का निपटारा 10 साल से अधिक समय तक नहीं किया जा सका।
शीर्ष अदालत के समक्ष दायर एक रिट याचिका में आगरा सेंट्रल जेल में बंद रितु पाल ने तर्क दिया था कि समय पर न्याय मिलना मानवाधिकारों का एक हिस्सा है। त्वरित न्याय से इनकार किए जाने से वास्तव में न्याय के प्रशासन के प्रति जनता का विश्वास खतरे में पड़ सकता है।
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court)से कहा, या तो उसे जमानत देने का निर्देश दिया जाए क्योंकि उसकी अपील हाईकोर्ट में 10 वर्षों से लंबित है या इलाहाबाद हाईकोर्ट से दो सप्ताह के भीतर उसकी जमानत याचिका का निपटारा करने का आदेश दिया जाए। याचिकाकर्ता के वकील ऋषि मल्होत्रा की दलील सुनने के बाद सीजेआई की पीठ ने रितु पाल को रिहा करने का आदेश दिया।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, याचिकाकर्ता पहले ही 14 साल और तीन महीने की वास्तविक हिरासत और 17 साल और तीन महीने की कुल हिरासत( छूट के साथ) गुजार चुका है। विशेष रूप से तथ्य यह है कि सह-आरोपियों को पहले ही जमानत पर रिहा कर दिया गया है और याचिकाकर्ता की जमानत याचिका वर्ष 2012 से हाईकोर्ट के समक्ष विचार के लिए लंबित हैं। लिहाजा हम इसे जमानत देने के लिए उपयुक्त मामला मानते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court)ने पिछले साल सितंबर में 1.83 लाख लंबित आपराधिक अपीलों पर चिंता जताई थी। शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट एवं उत्तर प्रदेश सरकार को आजीवन कारावास की सजा पाए दोषियों की लंबित जमानत याचिकाओं को निपटाने के लिए सुझाव देने के लिए कहा था। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित आपराधिक अपीलों को लेकर स्वत: संज्ञान लिया था और अपील दायर करने पर जमानत याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने की बात कही थी।
गौरतलब है कि रितु पाल को 14 जनवरी 2008 को उत्तर प्रदेश की बागपत (Baghpat) अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। वह फरवरी 2014 में बागपत जिले में एक व्यक्ति की हत्या के लिए हत्या के आरोपों का सामना कर रहा था। उसने निचली अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी।