सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) ने केंद्र सरकार को राजद्रोह कानून( Sedition law )की धारा 124ए पर पुनर्विचार के लिए समय दे दिया है। जब तक पुनर्विचार की ये प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती तब तक इस धारा के तहत कोई केस दर्ज नहीं होगा। यहां तक कि धारा 124ए के तहत किसी मामले की जांच भी नहीं होगी। कोर्ट ने कहा कि जिन लोगों पर इस धारा में केस दर्ज हैं और वो जेल में हैं वो भी राहत और जमानत के लिए कोर्ट जा सकते हैं। 162 साल में पहली बार ऐसा हो रहा है जब राजद्रोह के प्रावधान के संचालन पर रोक लगाई गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को राजद्रोह कानून ( Sedition law )की सभी कार्यवाहियों पर रोक लगा दी। इसके बाद केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने कार्यपालिका और न्यायपालिका सहित विभिन्न संस्थानों का मार्गदर्शन करने वाली ‘लक्ष्मण रेखा’ का उल्लेख किया और कहा कि किसी को भी इसे पार नहीं करना चाहिए।
अदालत की ओर से निर्देश जारी किए जाने के कुछ देर बाद ही मीडिया से बात करते हुए रिजिजू ने कहा कि हम एक-दूसरे का सम्मान करते हैं। अदालत को सरकार और विधान मंडल का सम्मान करना चाहिए। हमारे पास स्पष्ट सीमा है और यह ‘लक्ष्मण रेखा’ किसी को भी पार नहीं करनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण की अध्यक्षता में एक बेंच ने यह अहम निर्देश दिया है। कोर्ट ने राजद्रोह( Sedition law ) से जुड़े प्रावधानों की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने के लिए जुलाई के तीसरे हफ्ते तक का समय दिया है, और तब तक केंद्र सरकार को इससे जुड़े प्रावधानों की समीक्षा का निर्देश दिया गया है। पिछले साल वर्ष 2021 में मेजर जनरल (रिटायर्ड) एसजी वोम्बटकेरे ने आईपीसी के सेक्शन 124ए को चुनौती देने वाली याचिका दायर किया था। इस सेक्शन के तहत राजद्रोह के आरोप लगाए जाते हैं।
इससे पहले राजद्रोह कानून धारा 124-ए को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बुधवार को भी सुनवाई हुई। सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र का पक्ष रखा।अपनी दलीलें पेश करते हुए उन्होंने कहा कि एक संज्ञेय अपराध को दर्ज करने से रोकना सही नहीं होगा। प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ से मेहता ने कहा कि 1962 में एक संविधान पीठ ने राष्ट्रद्रोह कानून की वैधता को कायम रखा था। इसके प्रावधान संज्ञेय अपराधों के दायरे में आते हैं। उन्होंने कोर्ट से कहा कि हां, ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज करने की निगरानी की जिम्मेदारी पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारी को दी जा सकती है।
उन्होंने शीर्ष कोर्ट से कहा कि जहां तक राजद्रोह के विचाराधीन मामलों का सवाल है, हर केस की गंभीरता अलग होती है। किसी मामले का आतंकी कनेक्शन तो किसी का मनी लॉन्ड्रिंग कनेक्शन हो सकता है। अंतत: लंबित केस अदालतों के समक्ष विचाराधीन होते हैं और हमें कोर्ट पर भरोसा करना चाहिए। केंद्र सरकार की ओर से साफतौर पर कहा गया कि राष्ट्रद्रोह के प्रावधानों पर रोक का कोई भी आदेश पारित करना अनुचित होगा। इन्हें संविधान पीठ ने कायम रखा है।
All pending cases, appeals and proceedings with respect to charges framed for sedition should be kept in abeyance, says SC
— Press Trust of India (@PTI_News) May 11, 2022
We’ve made our positions very clear & also informed the court about intention of our PM. We respect the court & its independence. But there’s a ‘Lakshman Rekha’ (line) that must be respected by all organs of the state in letter & spirit:Law Min Kiren Rijiju on SC staying sedition pic.twitter.com/Z4vR0FUmvt
— ANI (@ANI) May 11, 2022