Friday, September 20, 2024

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राजस्थान में द्धादशवां एवं अंतिम ज्योतिर्लिंग ‘घुश्मेश्वर महादेव’ का मंदिर 900 वर्ष है पुराना,यहाँ अद्भुत शक्ति देती है भगवान शिव की आराधना 

Ghushmeshwar Temple

 (  ) के   जिले के शिवाड़ में स्थित 12वें ज्योतिर्लिंग( Jyotirlinga) घुश्मेश्वर महादेव (Ghushmeshwar Mahadev) मंदिर में आज श्रावण मास के द्वितीय सोमवार को श्रद्धालुओं की जमकर भीड़ उमड़ी।  शिवालय को द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक श्री घुश्मेश्वर महादेव  (Ghushmeshwar Mahadev) को  द्वादश ज्योतिर्लिंग माना जाता है। प्राचीन काल में शिवाड़ का नाम शिवालय था। घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग अधिकांश समय जलमग्न रहने के कारण अदृश्य रहता है। मंदिर में  श्रावण महोत्सव चल रहा है। घुश्मेश्वर मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष प्रेम प्रकाश शर्मा ने बताया कि इस बार 2 सावन होने के कारण श्रावण महोत्सव 2 महीने तक चलेगा। इस दौरान रोजाना कई धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा।

बताते हैं कि इस मंदिर का वर्णन शिव पुराण में भी किया गया है। स्थानीय लोग बताते हैं कि घुश्मा के मृत पुत्र को जीवित करने के लिए अवतरित प्रभु शिव ही घुमेश्वर या घुश्मेश्वर के नाम से जाने जाते हैं। शिव पुराण के कोटिरूद्र संहिता के 32 वें श्लोक के अंतिम चरण में घुश्मेश्वर का स्थान शिवालय नामक स्थान होना बताया गया है। इसी शिवालय का नाम मध्यकाल में शिवाल और शिवाल से वर्तमान में शिवाड़ हो गया।

Ghushmeshwar Temple 2घुश्मेश्वर मंदिर का इतिहास अद्भुत है। यह मंदिर 900 वर्ष पुराना बताया जाता है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग स्व प्राकट्य है।बताया जाता है घुस्मा की तपस्या से भगवान का प्राक्ट्य हुआ। शिवलिंग को पाताल से जुड़ा हुआ माना जाता है। वेदों और उपनिषदों में भी शिवाड़ घुश्मेश्वर वर्णित है। महर्षि वेदव्यास ने भी उपनिषद में इस मंदिर का वर्णन किया है।

इस ज्योतिर्लिंग को भगवान शंकर के निवास के रूप में द्धादशवां एवं अंतिम ज्योतिर्लिंग मानने पर हालाँकि कुछ विवाद है किन्तु यहाँ के लोगों के पास इसके पक्ष में कई प्रमाण भी है जिनसे वे इसे 12 ज्योतिर्लिंग सिद्ध करते हैं। यह शिवालय राज्य के सवाई माधोपुर जिले के ग्राम शिवाड़ में देवगिरि पहाड़ के अंचल में स्थित है, जो जयपुर से मात्र 100 किलोमीटर दूर नेशनल हाईवे सं.12 पर बरोनी से 21 किलोमीटर दूर स्थित है। यह जयपुर कोटा रेलमार्ग पर ईसरदा रेलवे  स्टेशन से 3 किलोमीटर दूर स्थित है।

भारत धार्मिक मान्यताओं और पवित्र मंदिरों से बसा देश है, जहां लोग ईश्वर की आराधना करते हैं। यहां कई सारे प्राचीन और पवित्र मंदिर हैं, इनमें भगवान भोलेनाथ के मंदिरों की महिमा ही अपार है। कई भक्त हर साल भगवान शिव के इन मंदिरों, शिवालयों में हर साल लाखों की संख्या में जाते हैं। इन्हीं पवित्र शिवालयों में भोलेनाथ के 12 प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग भी हैं। इन ज्योतिर्लिंगों का महत्व सबसे अधिक है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, भोलेनाथ के 12 ज्योतिर्लिंगों में  भगवान शिव ज्योति के रूप में स्वयं विराजमान हैं। ये सभी ज्योतिर्लिंग भारत के अलग अलग राज्यों में स्थित हैं।

इन में घुश्मेश्वर महादेव  (Ghushmeshwar Mahadev) मंदिर की महत्ता के बारे में एक कथा प्रचलित है कि प्राचीनकाल में देवगिरी पर्वत के पास एक सुधर्मा नामक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम सुदेहा था। उसकी कोई संतान नहीं थी। इसलिए उसने अपनी छोटी बहन धुश्मा के साथ सुधर्मा का विवाह करा दिया। घुश्मा शिव भक्त थी। शिवभक्ति के कारण घुश्मा पुत्रवती हो गई। पुत्र को देख कर सुदेहा के मन में ईर्ष्या होने लगी और वही ईर्ष्या इतनी बढ़ गई कि सुदेहा ने घुश्मा के पुत्र की हत्या कर निकटवर्ती सरोवर में डाल दिया। दूसरे दिन जब घुश्मा पार्थिव शिवलिंग का पूजन कर विसर्जन करने गई तो भगवान शिव प्रकट हुए और उसके पुत्र को जीवित करके घुश्मा से वर मांगने को कहा।

तब घुश्मा ने कहा, ”हे प्रभु! लोगों की रक्षणार्थ आप सदैव इसी स्थान पर निवास करें। भगवान शिव भगवान ने उसी सरोवर की तरफ देखकर यह वर दिया कि यह सरोवर शिवलिंगों का स्थान हो जाए। तब से वह तीनों लोकों में ‘शिवालय’ नाम से प्रसिद्ध हो गया। बताया जाता है कि विक्रम संवत् 1835 में इस सरोवर की खुदाई तत्कालीन राजा ठाकुर शिवसिंह ने करवाई। उन्हें बहुत सारे शिवलिंग मिले, जिनको उन्होंने घुश्मेश्वर के प्रागंण में दो मंदिर बनवाकर एक-एक जललहरी में 22-22 शिवलिंग स्थापित करवाये। ये जललहरियां यहां आज भी मौजूद हैं। इससे भी उपर्युक्त कथा की फष्टि होती है कि शिकराण में जिस शिवालय का उल्लेख है, वह यही सरोवर है।

घुश्मेश्वर के दक्षिण में देवगिरी नामक एक पर्वत है। सफेद पत्थरों वाला यह पर्वत अद्भुत दिखाई देता है। इसके चारों ओर के पर्वत मटमैले पत्थरों के हैं। अत: इन मटमैले पर्वतों के बीच में सफेद देवगिरी पर्वत बिल्कुल कैलाश सदृश्य दिखाई देता है।
मंदिर के पुजारियों के अनुसार घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग प्राचीनकाल से ही चमत्कारी रहा है। यहां के रहने वाले पूर्वज एवं पंडित यहां के चमत्कार के बारे में बहुत बताते हैं। उनके अनुसार, महमूद गजनवी जब मथुरा से सोमनाथ की ओर जा रहा था तो घुश्मेश्वर मंदिर भी मार्ग में पड़ा। उसने यहां भी लूटपाट मचाने की चेष्टा की। तत्कालीन राजा चन्द्रसेन इसकी सूचना मिलते ही मंदिर की रक्षा के लिए सेना लेकर आ पहुंचा। तब घोर युद्ध हुआ। राजा चन्द्रसेन, उनके पुत्र इन्द्रसेन व सेनापति आदि ने युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। गजनवी ने मंदिर को तोड़ दिया तथा उसके पास में एक मस्जिद बनाई जो आज भी विद्यमान है। युद्ध के बाद महमूद का सेनापति सालार मसूद खजाना लूटने की इच्छा से शिवलिंग के पास पहुंचा तो जलहरी में से एक बिजली जैसा प्रचंड प्रकाश दिखाई दिया। इससे भयभीत होकर वह मूर्छित हो गया और वहां से भाग निकला।

Jaba Upadhyay

Jaba Upadhyay is a senior journalist with experience of over 15 years. She has worked with Rajasthan Patrika Jaipur and currently works with The Pioneer, Hindi.