Sunday, April 20, 2025

Ayodhya Ram Mandir, Features, Uttar Pradesh

Ayodhya Ram Temple: 1990 में कारसेवकों पर सरकार के दमन की सच्चाई लिख जेल गये संपादक बोले -जनभावनाओं का एक संकल्प भव्य “राम मंदिर”पूरा हो रहा है

Editor who went to jail for writing the truth about the government's repression on Karsevaks in 1990 says Ram Temple is a realisation of public sentiments

22 जनवरी को  ( ) में   ( की प्राण प्रतिष्ठा होनी है। देश और दुनिया के राम भक्त इस दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। करीब तीन दशक पहले मंदिर के लिए हुए आंदोलन में कई कारसेवक शामिल हुए थे।इनमें राम मंदिर निर्माण के संकल्प में   ( ) जिले की शानदार भागेदारी रही।राममंदिर कारसेवकों पर सरकार के दमन की सच्चाई तीखे लेखन से बयां करने वाले पत्रकारों जुल्म और ज़्यादती का शिकार होना पड़ा जिन्हें सरकार ने राम भक्त होने के अपराध जेल में डाल दिया आज वह अपने 33 साल पहले की  सरकारी यातनाओं को याद करते हुये ख़ुश हैं कि जनभावनाओं का एक संकल्प भव्य राम मंदिर के साथ पूरा हो रहा है -राजू उपाध्याय

33 वर्ष पुरानी कोशिशों पर एटा के सकारात्मक सहयोग और संघर्ष की बात करें तो यह सब स्वर्णिम अक्षरों में लिखे जाने योग्य प्रतीत होता है। इन पंक्तियों का लेखक पत्रकारिता में तब भी प्रखर और मुखर लेखन करता रहा था । उस वक्त सरकार के उग्र तेवर और प्रशासन के उत्पीड़नात्मक एक्शन को लेकर हमारे संपादित अखबार में समाचार खुल कर प्रकाशित किए जा रहे थे। यह कार्य  ( ) के रामलीला मढ़ी चौराहे पर ‘सूचना साहित्य’ साप्ताहिक समाचार के माध्यम से किया जा रहा था। स्थानीय स्तर पर उक्त समाचार पत्र के तेवर को देखते हुए प्रशासन ने प्रेस पर दबाव बनाया इसी योजना तहत लगातार कई दिनों तक सीओ धीरेंद्र सिंह ने निगरानी बड़ा दी और रात में अचानक साइकिल चलाते हुए आया करते और आकर पूंछा करते आज अखबार में क्या छापोगे।आप लोग कार सेवा आंदोलन को सहयोग कर रहे है। इस बात पर उन्हें दो टूक कहा कि समाचारों को छपने से पहले उजागर नही किया जा सकता। जिस पर सीओ पुलिस ने धमकी दी तो आपका अखबार और प्रेस को बंद करा देंगे। प्रशासन की टेढ़ी नजर को समझते ही हम लोगों ने मुद्रण के सिस्टम को अन्य गुप्त स्थान पर स्थापित कर दिया। अगले दिन प्रेस स्थल में ताले डाल दिए गए और हम तीन भाइयों को कोतवाली बुला कर अरेस्ट बता दिया। यद्यपि हमारी रणनीति से अखबार का प्रकाशन नियमित रहा अखबार के पृष्ठ गुप्त जगह से बनते और मौका लगते ही उन्हें छापा जाता । जेल में रहते हुए साप्ताहिक अखबार के कई अतिरिक्त बुलेटिन छाप कर प्रशासन के उत्पीड़न को सुखियों में रखा इस दौरान जेल के अंदर राम भक्तो के जोशे जुनून की रिपोर्टिंग की गई जिससे बाहर रह गए आंदोलन के पदाधिकारियों को खूब बल मिला। यह सब अनछुए पहलू और तथ्यों को इन पंक्तियों का भुक्त भोगी लेखक अब बदले गर्व भरे पलों में बेवाकियत से उस दौर के हालत को पेश करना अपना नैतिक राष्ट्रीय दायित्व समझता है। जैसा कि बताया जा रहा लाल कृष्ण आडवाणी के रथ यात्रा के शुरू होने से कार सेवा आंदोलन की स्क्रिप्ट लिख गई थी उनकी रथ यात्रा निर्धारित समय 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या पंहुचनी थी पर बिहार में लालू यादव के द्वारा उनकी गिरफ्तारी कराने के बाद हालात बदल गए या यूं कहे की राम के लिए आंदोलन कर रहे संगठनों को संजीवनी मिल गई फिर क्या था ३० अक्टूबर को कार सेवकों को अयोध्या पहुंचने का एलान कर दिया। जिस पर तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार ने किसी भी कीमत पर अयोध्या में कार सेवकों न पहुंचने देने के लिए सरकारी दमन नीति बना ली जिस पर आनन फानन में जिलों के पुलिस प्रशासन आंदोलन की हवा निकालने की कार्यवाही में जुट गया।

 ( ) में कार सेवकों हिंदू वादी संगठनों,कट्टर राम भक्तों एवं विहिप  के नेताओ सहित उत्साही युवकों एवं समर्थित व्यापारियों की नगर मुहल्ला तहसील बार सूचियां बनाई गई जिसको अंतिम रूप सरकार समर्थित स्थानीय नेताओं की अंतिम सहमति ली गई। बहुत कम लोगों को पता होगा सबसे पहली गिरफ्तारी एटा के प्रख्यात युवा तुर्क कार सेवा आंदोलन के प्रबल समर्थक डॉ. वीरेंद्र पांडेय (जो वर्तमान में अमेरिका में रह रहे हैं) को आधी रात के बाद अवागढ़ हाउस स्थित आवास से गिरफ्तार किया गया। इसके बाद शहर में अनेक व्यापारियों आंदोलन से जुड़े नेताओ को उठा कर जेल में डाल दिया गया। इस मौके पर अफसरों और तत्कालीन सरकार परस्त स्थानीय नेताओं ने गिव एंड टेक कराकर कर अरेस्टिंग के डर को खूब भुना कर धनार्जन किया।
पत्रकारिता से जुड़े और इस पेशे में सक्रिय रहने के कारण हमे(इन पंक्तियों के लेखक) यह बिलकुल आभास नहीं था प्रशासन की टारगेट सूची में हम या हमारे परिवारिजन हो सकते है। यहां यह उजागर करना समीचीन लगता है उस वक्त कार सेवकों के दमन नीति के प्रशासनिक रणनीतिकार तत्कालीन आईएएस एसडीएम नवनीत सहगल ( जो प्रमुख सचिव पद से सेवा निवृत है)तत्कालीन सीओ धीरेंद्र सिंह यादव डीएम जेपी शर्मा पूरा अमला था जो स्थानीय राजनीति का पिट्ठू बन कर काम कर रहा था । कारसेवक आंदोलनकरियों में ये प्रशासनिक समूह विलेन के रूप में चर्चित था। इन पंक्तियों का लेखक राजनीति और प्रशासन की इस जुगलबंदी को खुलेआम पत्रकारिता से उजागर कर रहा था। इस नजरिए से मुलायम सरकार के यह अफसर टारगेट बना चुके थे परिणाम स्वरूप बात करने के बहाने बुला कर हमे और बड़े भाई सत्येंद्र स्वप्नेश को बैठाए बिठाए गिरफ्तार घोषित कर दिया। छोटे भाई संजय उपाध्याय को अस्थाई जेल भेज दिया।

30 अक्टूबर को गिरफतार कर 31 को को जिला कारागार भेज दिया। यहां यह भी बता दे उस वक्त तत्कालीन सरकार की सोची समझी नीति थी की अग्रणी कारसेवको को लंबे समय तक जेल में रखना है।इस लिए स्थानीय अदालतें जमानत अर्जियां खारिज कर रही थी दूसरी तरफ पुलिस राष्टीय सुरक्षा कानून आदि के गंभीर मामले दर्ज करने लगी। परिणाम स्वरूप कार सेवा आंदोलन का स्वरूप जेल भरो आंदोलन के रूप में बदल गया। परिणाम स्वरूप स्वत स्फूर्त गिरफातारियो के लिए लोग समूह में आने लगे।परिणाम स्वरूप जिला जेल के अतिरिक्त अस्थाई जेल स्कूलों में बनाई गई।जिनमे कुछ दिनों के लिए रखा।
इन स्थितियों के बीच प्रशासन इस लेखक और उसके भाई को जेल में अपराधी श्रेणी के बैरक में रख कर कारसेवा आंदोलन करियों से अलग थलग कर दिया। उधर मथुरा के हाई प्रोफाइल हिंदू वादी संघ के पदाधिकारी एवं नेतागण  ( ) जेल में आ गए जिन्होंने पूरे जेल के माहौल को राममय कर दिया जेल की दीवारों पर मंदिर आंदोलन से संबंधित नारे लिखे गए खुले आम जय घोष किए गए। प्रशासनिक निर्देश पर जेल प्रशासन को दोहरा रवैया हम लोगों के खिलाफ अच्छा नहीं लगा फल स्वरूप हम ने भूख हड़ताल जेल में रह कर शुरू कर दी जिसकी तत्कालीन मीडिया ने खूब फोकस किया यहां यह बताना समीचीन है कि उक्त कार सेवा आंदोलन की आड़ में हम लोगो की निष्पक्ष रिपोर्टिंग से कुपित होकर तत्कालीन प्रशासन ने यह उत्पीड़नात्मक रवैया अख्तियार किया था।(उक्त भूख हड़ताल की तस्वीर मीडिया बंधु ने उस समय क्लिक की जिसे इस आलेख के साथ साझा कर रहे हैं)

जिसे रिहा होने और मुकद्दमे सरकार द्वारा वापिस लिए जाने के बाद पूरे मामले को प्रेस कॉन्सिल आफ इंडिया के समक्ष रखा जिस पर रघुवीर सहाय की अध्यक्षता में उप समिति ने आगरा सर्किट हाउस में कई जिलों के प्रशासनिक अधिकारियों को तलब किया जिसकी प्रबल पैरोकारी दैनिक आज के तत्कालीन प्रधान संपादक शशि शेखर जी ने आगरा सहित एटा के हम पत्रकारों का पक्ष जोरदारी से रखा। इधर मथुरा के विहिप पदाधिकारी बड़े नेताओं के समर्थन मिला जिसमे रविकांत गर्ग,राम प्रसाद कमल,अजय पोइया, प्रणत पाल सिंह सिडपुरा के चेयरमैन शकर लाल गुप्ता आदि दर्जनों लोगों ने साथ दिया इधर स्थानीय विहिप पदाधिकारी जिनमे प्रमुख रूप से बड़े भाई नारायण भास्कर सहित भूख हड़ताल में अपरमित सहयोग किया।
भूख हड़ताल की खबर बाहर सुर्खियों रहने के बाद   ( ) जेल प्रशासन ने सामाजिक कार्यकर्ताओं से संपर्क कर कार सेवक बंदियों के साथ रखने सम्मान जनक अनुमति दी इस कार्य की मध्यस्थता वयोवृद्ध पत्रकार सोमदेव पद्मेश,अरुण दीक्षित, वी के सिंह यादव सुभाष शर्मा एडवोकेट, दैनिक जागरण ब्यूरो गजेंद्र सिंह राठौर( जिनकी 4 दिसंबर 1990 में दंगाइयों ने हत्या कर दी)आदि ने की । 18 दिन की जेल यात्रा के दौरान राम मंदिर  (Ram Temple)आंदोलन का जहां पूरा ककहरा समझने में मदद मिली वही अनेक विद्वानों से संपर्क हुआ। तैतीस साल पहले राम मंदिर  (Ram Temple) का संकल्प आज जब पूरा होता दिख रहा है तो लगता है कहीं न कही छोटे बड़े रूप में सहयोग की आहुति हमारी भी है यह विचार ह्रदय और आत्मा को गदगद और आह्लादित करता है।


लेखक राजू उपाध्याय एक अनुभवी पत्रकार हैं, जिनके पास स्पुतनिक, वीर अर्जुन, द पायनियर, राष्ट्रीय स्वरूप सहित विभिन्न राष्ट्रीय और क्षेत्रीय समाचार पत्रों में 35 वर्षों से अधिक का अनुभव है।

राजू उपाध्याय 1990 में एटा ज़िले से प्रकाशित साप्ताहिक समाचार पत्र “सूचना साहित्य” के संपादक थे। कारसेवकों पर दमन की ख़बरों के प्रकाशन के बाद इन्हें गिरफ़्तार कर जेल में डाल दिया गया और अख़बार के दफ़्तर पर ताले डलवा दिये गये थे, लेकिन उन्होंने जेल में रहकर समाचार पत्र संचालन किया। वर्तमान में श्री उपाध्याय VijayUpadhyay.com के वरिष्ठ सलाहकार संपादक है।


संपादक द्वारा नोट: इस लेख में व्यक्त किए गए विचार, विचार और राय पूरी तरह से लेखक के हैं, और जरूरी नहीं कि वे VijayUpadhyay.com के विचारों को प्रतिबिंबित करते हों।

Raju Upadhyay

Raju Upadhyay is a veteran journalist with experience of more than 35 years in various national and regional newspapers, including Sputnik, Veer Arjun, The Pioneer, Rashtriya Swaroop. He also served as the Managing Editor at Soochna Sahitya Weekly Newspaper.