सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) की हीरक जयंती के अवसर पर दिल्ली में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi ) के साथ देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल भी शामिल हुए। कार्यक्रम में अपने संबोधन में पीएम मोदी ने कहा कि ‘औपनिवेशिक आपराधिक कानूनों को समाप्त करके ‘भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता’, ‘भारतीय न्याय संहिता’ और ‘भारतीय साक्ष्य अधिनियम’ की व्यवस्था शुरू की। इन बदलावों से हमारी कानूनी पुलिसिंग और जांच प्रणाली एक नए चरण में प्रवेश कर गई है।’
प्रधानमंत्री ने कहा ‘मैं सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) से अनुरोध करता हूं कि वह भी इसी तरह की क्षमता-निर्माण प्रक्रिया के लिए आगे आए, सरकार लगातार काम कर रही है और कई निर्णय ले रही है, जिससे विश्वसनीय न्यायिक प्रणाली बन सके। जन विश्वास विधेयक इसी दिशा में एक कदम है। इससे न्यायिक व्यवस्था पर अनावश्यक बोझ कम होगा। सुप्रीम कोर्ट ने भारत के जीवंत लोकतंत्र को समृद्ध किया है। भारत की आज की आर्थिक नीतियां और आज जो कानून बन रहे हैं, वही कल के उज्जवल भारत का आधार बनेंगे। आज पूरी दुनिया की नजर भारत पर है और भारत पर दुनिया का भरोसा बढ़ा है। भारत के लिए हर अवसर का लाभ उठाना जरूरी है।’
प्रधानमंत्री ने कहा भारतीय नागरिक न्याय तक आसान पहुंच के हकदार हैं और सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) की इसमें अहम भूमिका है। पूरी न्याय प्रणाली, सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर काम करती है। पीएम मोदी ने कहा ‘पिछले हफ्ते ही सुप्रीम कोर्ट भवन परिसर के विस्तार के लिए बीते हफ्ते ही 800 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है। ई-कोर्ट मिशन के तीसरे चरण के लिए दूसरे चरण की तुलना में चार गुना ज्यादा राशि मंजूर की गई है।’
सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना इस भावना के साथ की गई थी कि यहां कानूनों की व्याख्या कानून के शासन के अनुसार की जाएगी न कि औपनिवेशिक मूल्यों या सामाजिक पदानुक्रम के आधार पर। यह विश्वास को मजबूत करता है कि न्यायपालिका अन्याय, अत्याचार और मनमानी के खिलाफ एक सुरक्षा कवच के रूप में काम करती है। सुप्रीम कोर्ट समाधान और न्याय की संस्था है।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि उच्च न्यायपालिका को स्थगन संस्कृति से निकलकर व्यावसायिकता की संस्कृति अपनाने पर ध्यान देना होगा। दूसरा, यह सुनिश्चित करना होगा कि मौखिक दलीलों की लंबाई अंतहीन न हो और पहली पीढ़ी के वकीलों को भी समान मौके मिलें। उन्होंने यह भी कहा कि न्याय प्रदान करने की कला सामाजिक और राजनीतिक दबाव और मानवीय स्वभाव में निहित पूर्वाग्रहों से मुक्त होनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर सीजेआई ने कहा कि इसकी स्थापना इस आदर्श भावना के साथ की गई थी कि यहां कानूनों की व्याख्या सांविधानिक कानून को ध्यान में रखकर की जाएगी, न कि औपनिवेशिक मूल्यों या सामाजिक पदानुक्रम के आधार पर। इसने इस विश्वास की पुष्टि की कि अन्याय, अत्याचार और मनमानी के खिलाफ न्यायपालिका को एक सुरक्षा कवच के रूप में काम करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट संकल्प और न्याय की संस्था है। लोग बड़ी संख्या में इसके पास आते हैं और यह दर्शाता है कि हम उस भूमिका के निर्वहन में कितने सफल हुए हैं।
उन्होंने कहा, निकट भविष्य में हमें न्यायपालिका को प्रभावित करने वाले संरचनात्मक मुद्दों जैसे लंबित मामलों, पुरानी प्रक्रियाओं आदि पर ध्यान देना होगा। इतिहास का जश्न मनाने के साथ हमें पीछे मुड़कर देखना चाहिए और समान रूप से आगे बढ़ने के बारे में भी सोचना चाहिए। सीजेआई ने कहा कि प्रशासनिक पक्ष की बात करें तो सुप्रीम कोर्ट प्रक्रियात्मक निष्पक्षता के लिए कई बाधाओं को खत्म कर रहा है। मसलन, कानूनी संसाधनों तक समान पहुंच, अंग्रेजी भाषा की अपरिचितता, अदालतों की भौतिक पहुंच के मुद्दे।
सीजेआई ने बताया कहा कि मई, 2023 में अपग्रेडेड संस्करण लॉन्च होने के बाद से करीब 128000 ई-फाइलिंग की गई है। ई-फाइलिंग 25 राज्यों में उपलब्ध हैं। उन्होंने 29 लाख से अधिक मामले दर्ज किए हैं। बार और बेंच के अपार समर्थन के साथ, हम कोविड-19 के दौरान तेजी से वर्चुअल सुनवाई में सक्षम हुए। महामारी के बाद भी हाइब्रिड सुनवाई जारी है, जिससे देश या दुनिया के किसी भी हिस्से में बैठे किसी भी भारतीय वकील को इस अदालत के समक्ष बहस करने की अनुमति मिलती है।