श्रावण मास के सोमवार को शिवभक्तों की भीड़ वैसे तो तमाम शिवालयों पर उमड़ेगी लेकिन उत्तर प्रदेश के एटा (Etah ) जिले स्थित ‘कैलाश मंदिर'( Kailash Temple ) पर हर साल की तरह श्रद्धालुओं का सैलाब फिर नजर आयेगा। ऐतिहासिक कैलाश मंदिर में चर्तुमुखी शिवलिंग से जुड़ी आस्थायें मनोकामना पूर्ण करने वाली कही जाती हैं। यही वजह है कि 150 वर्ष पूर्व स्थापित यह मंदिर लोगों की अगाध श्रद्धा का केन्द्र है।
कैलाश मंदिर ( Kailash Temple ) के मुख्य महंत धीरेन्द्र कुमार झा ने बताया कि ये मंदिर सम्वत 1926 में एटा के तत्कालीन राजा दिलसुख राय ने बनवाया था। ये भूतल से 190 फुट ऊँचा है और इसमें चतुर्मुखी शिवलिंग है ऐसी शिवलिंग केवल नेपाल के मंदिर मे है। इसीलिए इस मंदिर की अधिक मान्यता है।
डेढ़ सौ साल पुराने श्री कैलाश महादेव मंदिर ( Kailash Temple ) जिले का सबसे ऊंचा शिवालय है। 190 फुट ऊंचे शिखर वाले मंदिर का गर्भगृह सौ फुट ऊंचा ही नहीं ठोस भी है। मान्यता के अनुसार तत्कालीन राजा राजा दिलसुख राय ने राज्य की खुशहाली एवं प्रजा को कष्ट से दूर रखने के लिए मंदिर का निर्माण कराया था। श्रेष्ठ पंडितों एवं ज्योतिषी सलाह पर भगवान शिव की चौमुखी प्रतिमा की परंपरागत तरीके से लंबे अनुष्ठानों के बाद प्राण प्रतिष्ठा कराई गई थी। किवंदती के अनुसार चौमुखी शिवलिंग कवच बनकर चारों दिशाओं से भक्तों की रक्षा करती है।कैलाश मंदिर की भव्यता और भगवान शिव का भक्तों को मिलने वाला अनुग्रह इसके महत्व को बढ़ाता रहा है।
शिखर शैली के इस कैलाश मंदिर ( Kailash Temple ) की जमीन से ऊंचाई 200 फुट प्रमुख शिव मंदिरों में एक है। चूने बरी के कार्य से मंदिर की मजबूती होने के अलावा चर्तुमुखी शिवलिंग और कुण्डलिनी शक्ति से आवेष्टित जलहरी मुख्य आकर्षण हैं। उस समय लगभग तीन लाख रुपया मंदिर पर व्यय होना बताया जाता है।

राजा दिलसुख राय ने खुद काव्य में शिलालेख भी लगवाया, जो भगवान शिव के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है। अब तो स्थिति यह है कि चर्तुमुखी शिवलिंग मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाली होने को लेकर श्रावण मास के सोमवार व शिवरात्रि को अपार भीड़ नजर आती है। मन्दिर के मुख्य महंत धीरेन्द्र कुमार झा का कहना है कि यह मन्दिर मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला है जिसका प्रमाण यहां काफी संख्या में आने वाले श्रद्धालु हैं।