भोपाल ( Bhopal ) से 32 किमी की दूरी पर पहाड़ी पर एक बहुत बड़ा अधूरा शिव मंदिर है। ये भोजपुर शिव मंदिर (Bhojpur Shiva Temple) के नाम से जाना जाता है, इस मंदिर का निर्माण परमार वंश के प्रसिद्ध राजा भोज द्वारा किया गया था। ये मंदिर प्रकृति के बीच बना हुआ है, जहां से बेतवा नदी गुजरती है, उसी से सटे इस मंदिर का निर्माण किया गया है। मंदिर के बारे में कहते हैं कि ये एक एकलौता शिवलिंग है जो एक है पत्थर से बना हुआ है।जहां दूर-दूर से शिवभक्त दर्शन करने आते हैं।
सदियों से ये मंदिर इसी तरह आस्था का केन्द्र बना हुआ है, अपनी भव्य, विशाल संरचना और ऐतिहासिक महत्व के कारण पुरातत्व विभाग के संरक्षण में आने के बाद इसे इसके मूल स्वरूप में लाने का प्रयास भी जारी है। आस्था का केंद्र होने के साथ ही इसे मध्य भारत का सोमनाथ भी कहा जाता है।
भोजेश्वर शिव मंदिर (Bhojpur Shiva Temple) के नाम से लोग इसे जानते हैं और यह विश्व प्रसिद्ध है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह मंदिर एक रात में बनाया गया था। कहीं यह भी उल्लेख मिलता है कि पांडवों ने इसे बनाया था। जबकि यह एक हजार साल पहले राजाभोज (Raja Bhoj) की ओर से बनाने के भी तथ्य मिलते हैं।यह मंदिर पहाड़ी के बीच बना हुआ है, जहां से बेतवा नदी गुज़रती है, उसी से सटे इस मंदिर का निर्माण किया गया था, जहां दूर-दूर से शिवभक्त शिवलिंग के दर्शन करने आते हैं।
मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है गर्भ गृह में स्थापित 22 फुट ऊंचा शिवलिंग है, जो कि दुनिया के विशालतम शिवलिंगों में से एक है। शिवलिंग का व्यास 7.5 फुट है। शिवलिंग एक ही पत्थर से बनाया गया है, जिसे बनाने में चिकने बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया है
अब भी इस मंदिर का पूरा निर्माण नहीं हुआ, दरअसल इस मंदिर को पूरा न बनने के बारे में बताया जाता है कि मंदिर का निर्माण एक ही रात में करना था, जिस वजह से सूर्योदय होने तक इस मंदिर का निर्माण नहीं हो पाया इसीलिए इस मंदिर का निर्माण आज तक अधूरा है। दरअसल अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने माता कुंती ने इस मंदिर में आकर भगवान शिव की पूजा अर्चना की थी लेकिन जैसे ही सुबह हुई पांडव लुप्त हो गए और मंदिर अधूरा रह गया है।
कहा जाता है मंदिर अपूर्ण होने के पीछे का कोई ख़ास कारण आज भी लोगों को नहीं पता है लेकिन मान्यता है कि मंदिर के निर्माण को लेकर कोई संकल्प रहा होगा, उसका निर्माण एक रात में ही होना सुनिश्चित हुआ होगा लेकिन सुबह हो जाने के कारण मंदिर का निर्माण पूरा नहीं हो सका और मंदिर अंततः मंदिर अपूर्ण रह गया।मंदिर का निर्माण आज भी अधूरा है और आस-पास के अधूरे पिलर मूर्तियां इस बात की गवाही देते हैं।हालांकि पुरातत्व विभाग ऐसी किसी भी घटना की पुष्टि नहीं करता है।
इस मंदिर में भगवान शिव के पूजा अर्चना करने का तरीक़ा भी अलग है, शिवलिंग इतना बड़ा है कि आप यहां खड़े होकर भी अभिषेक कर सकते हैं।जहां अभिषेक हमेशा जलहरी पर चढ़कर ही किया जाता है। कुछ समय पहले श्रद्धालु भी यहां जलहरी तक पूजा करते थे लेकिन अब पुजारी ही वहां तक जाकर शिवलिंग की पूजा कर सकते हैं।