Friday, September 20, 2024

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Madhya Pradesh :चंबल में गुप्तकालीन ‘नरेश्वर महादेव मंदिर’ में चतुर्भुजी शिवलिंग का श्रावण मास में प्रकृति का अद्भुत जलाभिषेक, श्रद्धालुओं को कर देता है चकित 

Nareshwar Mahadev Temple

Nature's amazing Jalabhishek of the four-armed Shivalinga in the month of Shravan

श्रावण मास भगवान शिव की आराधना के लिए हम आपको चंबल की वादियों  ) के  (  )जिले  में 17 सौ साल साल पहले बनाए गये ऐसे ‘नरेश्वर महादेव मंदिर'(‘Nareshwar Mahadev Temple’)  के दर्शन कराते हैं जिनके बारे में शायद ही आपने कभी पहले पढ़ा या सुना होगा।  ग्वालियर-चंबल अंचल में गुप्तकालीन शिवालयों की श्रृखंला है।यहाँ चतुर्भुजी शिवलिंग का श्रवण मास में प्रकृति का अद्भुत जलाभिषेक श्रद्धालुओं को चकित कर देता है।

मध्य प्रदेश के   से 65 किमी दूर जिले की सीमा पर रिठौरा क्षेत्र के जंगल में स्थित है ऐतिहासिक धार्मिक स्थल ‘नरेश्वर महादेव मंदिर’  जिसे स्थानीय लोग केदारा के नाम से भी जानते हैं। नरेश्वर मंदिर समूह अद्भुत प्राचीन, धार्मिक और पुरातत्व महत्व का स्थल है। यह क्षेत्र इतना दुर्गम है कि ऊबड़-खाबड़ रास्तों से करीब तीन किमी चलकर यहां पहुंचा जा सकता है।

नारेश्वर महादेव के मंदिर (‘Nareshwar Mahadev Temple’) का निर्माण तीसरी से पांचवी सदी में गुप्तकाल में माना जाता है। नौवी सदी में प्रतिहार कला में इनकी भव्यता का विकास हुआ। नरेश्वर मंदिर का निर्माण चट्टानों को काटकर किया गया है। बारिशों के दिनों में गिरने वाला झरने का पानी शिवलिंग का अभिषेक करता हुआ प्रतीत होता है। यहां का दृश्य बड़ा ही सुंदर लगता है।

गुप्तकालीन नरेश्वर में कुल 43 मंदिरों का समूह है। जिनमें 23 मंदिर ठीक स्थिति में हैं। शेष मंदिर भग्नावस्था में हैं। यहां के मंदिरों का निर्माण वर्गाकार हुआ है जो अपने आप में अनूठा है। नरेश्वर मंदिर का मुख्य शिवलिंग भी चर्तुभुजी (चौकोर) है, जिसका जलाभिषेक (बारिश के दिनों में) पहाड़ों को चीरकर निकली जलधारा करती है। शिव मंदिरों के बीच माता हरसिद्धि का मंदिर भी है। यह मंदिर समूह राज्य पुरातत्व धरोहरों में शामिल हैं।

नरेश्वर मंदिर समूह, मुरैना के ही प्रसिद्ध बटेश्वर के 200 मंदिरों के समूह से लगभग तीन सदी पुराना है।  पुरातत्वविद  बताते हैं, कि बटेश्वर मंदिर समूह आठ से 10वीं सदी गुर्जर-प्रतिहार राजवंश में बने और 13वीं सदी में नष्ट हो गए थे। वहीं नरेश्वर मंदिर समूहों का निर्माण गुप्तकाल यानी तीसरी से पांचवीं सदी के बीच हुआ और इनका विस्तार 8वीं से 9वीं सदी के बीच हुआ। बटेश्वरा में अभी भी 140 मंदिर भग्नावस्था में हैं, तो नरेश्वर में भी 20 से ज्यादा मंदिरों के अवशेष डेढ़ वर्ग किलोमीटर के एरिया में पत्थरों की तरह बिखरे पड़े हैं।

हर मंदिर में शिवलिंग का अलग रूप- जिस प्रकार का चौकोर शिवलिंग नरेश्वर में है ऐसा नरेश्वर के अलावा भोपाल के भोजपुर मंदिर में देखने को मिलता है, लेकिन नरेश्वर के कई मंदिरों में चौकोर, कईयों में अण्डे जैसे आकार के, कईयों में पिंडी व मणि के आकार के शिवलिंग हैं। यानी हर मंदिर का अलग शिवलिंग हैं, जिनमें समानता यह है कि अधिकांश शिवलिंग नीचे से चौकोर हैं।

पुरातत्वविदों के अनुसार पहाड़ों को काटकर बनाए गए नरेश्वर मंदिरों (‘Nareshwar Mahadev Temple’) के पीछे, पहाड़ी की चोटियों पर दो तालाब हैं, जो बारिश के सीजन में लबालब हो जाते हैं। तालाबों का यह पानी पहाड़ों को चीरकर नरेश्वर शिवलिंग और उसके पास बने मंदिर के शिवलिंग के ऊपर ऐसे टपकता है,श्रावण मास में प्रकृति के द्वारा जलाअभिषेक हो रहा हो।

 

Vijay Upadhyay

Vijay Upadhyay is a career journalist with 23 years of experience in various English & Hindi national dailies. He has worked with UNI, DD/AIR & The Pioneer, among other national newspapers. He currently heads the United News Room, a news agency engaged in providing local news content to national newspapers and television news channels