ऐतिहासिक बराबर की पहाड़ियों पर स्थित बिहार (Bihar ) की महत्वपूर्ण विरासतों में से एक हैं ‘बाबा सिद्धेश्वर नाथ मंदिर’ (Baba Siddheshwar Nath Temple)। इन बराबर पहाड़ियों का कुछ हिस्सा जहानाबाद जिले के मखदुमपुर प्रखंड में तो कुछ हिस्से गया जिले में पड़ता है। वाणावर शृंखला की सबसे ऊंची चोटी पर है सिद्धेश्वर नाथ महादेव मंदिर। हजारों साल पुराने इस शिव मंदिर में जल चढ़ाने के लिए सालों भर श्रद्धालु आते हैं, लेकिन सावन में तो यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
श्रावणी चौथी सोमवारी को ‘बाबा सिद्धेश्वर नाथ मंदिर’ (Baba Siddheshwar Nath Temple) में जलाभिषेक के दौरान मची भगदड़ में सात लोगों की मौत एवं बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के घायल होने की खबर के बाद है यह प्राचीन मंदिर सुर्ख़ियों में आ गया। देश -दुनिया के लोगों की जिज्ञासा इस मंदिर की महत्वता जानने की है, ऐसा इस मंदिर क्या है जहां इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती ।
बराबर पहाड़ पर मौजूद ‘बाबा सिद्धेश्वर नाथ मंदिर’ (Baba Siddheshwar Nath Temple) का निर्माण सातवीं शताब्दी में गुप्ता काल के दौरान कराया गया था। हालांकि इसे लेकर दंतकथाओं में यह भी प्रचलित है कि राजगीर के राजा जरासंध द्वारा इस मंदिर का निर्माण कराया गया था। यहां से गुप्त मार्ग राजगीर किले तक पहुंचा था। इस रास्ते से राजा पूजा-अर्चना करने के लिए मंदिर में आते थे। पहाड़ी के नीचे विशाल जलाशय पातालगंगा में स्नान कर‘ बाबा सिद्धेश्वर नाथ मंदिर’ (Baba Siddheshwar Nath Temple) में पूजा-अर्चना की जाती थी।
यहां मगध के महान सम्राट अशोक के समय के शिलालेख आज भी उस साम्राज्य की गाथा अपने अंदर सहेजे हुए हैं। ब्राह्मी लिपि में लिखे यह अभिलेख हजारों साल के इतिहास का जीवंत प्रमाण हैं। यही कारण है कि इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए यह पसंदीदा जगह है। बराबर न केवल पहाड़ और जंगल के लिए प्रसिद्ध है बल्कि औषधीय पौधे और लौह अयस्क के भी यहां भंडार हैं।

गया प्रमंडल मुख्यालय से 30 किमी उत्तर-पूरब और जहानाबाद जिला मुख्यालय से 25 किमी दक्षिण-पूरब में स्थित बराबर पर्वत शृंखला न केवल स्वच्छंद और प्रदूषण रहित नैसर्गिक सौंदर्य को समेटे है, बल्कि भारत की अमूल्य पौराणिक एवं ऐतिहासिक धरोहरों का संगम भी है। बराबर की पहाड़ी राक पेंटिंग का अद्भुत नमूना है। सुरक्षा के लिहाज से अब यहां पुलिस थाने की भी स्थापना कर दी गई है। बौद्ध सर्किट से जोड़े जाने के साथ-साथ हर वर्ष यहां बाणावर महोत्सव का भी आयोजन होता है।
100 फीट ऊंचे इस पहाड़ को मगध का हिमालय भी कहा जाता है। यह देश के बेहद पुराने पहाड़ों में से एक है। बराबर की पहाड़ियों पर कुल सात गुफाएं हैं, जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। इनमें चार बराबर पहाड़ियों पर और तीन पास में ही नागार्जुन की पहाड़ियों पर हैं। पहाड़ों को सावधानी से काट कर हजारों साल पहले इंसान ने बेहद सुंदर गुफाओं को बनाया है। इनमें से कई गुफाओं की दीवारों को देखकर आप दंग रह जाएंगे। इसकी चिकनाई आज के समय में लगाई जाने वाली टाइल्स से कम नहीं हैं।
मौर्य काल की यह स्थापत्य कला पर्यटकों को आश्चर्य से भर देती है। इनका निर्माण सम्राट अशोक के आदेश पर आजीवक संप्रदाय के बौद्ध भिक्षुओं के रहने के लिए करवाया गया था। इसमें कर्ण चौपर, सुदामा और लोमस ऋषि गुफा अपनी स्थापत्य कला के लिए देश और दुनिया में प्रसिद्ध हैं। गुफाओं के प्रवेश द्वार पर ही अशोक के द्वारा खुदवाए गए अभिलेखों को पढ़ना रोमांचक अनुभव देता है।