वाराणसी (Varanasi) के नाटी इमली के भरत मिलाप ( Bharat Milap )मेले में रविवार को भगदड़ मच गई। मेले में श्रीराम के पुष्पक विमान के साथ पहुंचे यादव बंधुओं को पुलिस ने रोक दिया। इसके बाद दोनों पक्षों में नोकझोंक होने लगी। देखते ही देखते आपस में खींचतान मच गई।
इस बीच राज्यमंत्री रविंद्र जायसवाल के बेटे की पुलिस से बहस हो गई। तभी भीड़ बेकाबू हो गई और भगदड़ में कई लोग दब गए। कई लोगों ने जूते-चप्पल फेंककर मारे। इस दौरान पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा। इससे हालात बेकाबू हो गए।
यादव बंधु नाटी इमली मैदान पर 3.45 बजे 100 मीटर दूर मंदिर से श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता का पुष्पक विमान लेकर पहुंचे। बैरिकेडिंग पर मौजूद पुलिस अधिकारियों ने सिर्फ पुष्पक विमान और उसके साथ के लोगों को अंदर जाने की अनुमति दी। साथ चल रहे सैकड़ों यादव बंधुओं ने इसका विरोध किया।
इस पर बहस होने लगी। इसके बाद यादव बंधु बल्ली हटाने की जिद पर अड़ गए। धक्का-मुक्की होने लगी। इसके बाद आगे लगी रस्सी पर दबाव बढ़ने लगा। अचानक बारात के पीछे आने से भीड़ बढ़ गई। इसी में दबाव बढ़ा और लोग गिर पड़े। जिसके बाद भगदड़ मच गई।
चित्रकूट रामलीला समिति का विश्व प्रसिद्ध नाटी इमली का भरत मिलाप हर साल वाराणसी में होता है। इसमें लीला स्थल पर यादव बंधु अपनी पारंपरिक वेशभूषा में पहुंचते हैं। लीला समाप्त होने पर यादव समाज भगवान श्रीराम, माता सीता, लक्ष्मण, हनुमान और भरत-शत्रुघ्न के पुष्पक विमान को उठाकर अयोध्या नगरी की तरफ प्रस्थान करते हैं।
यदुकुल के कंधों पर पिछले 481 साल से यह मिलन होता आ रहा है। जब इस मैदान में बने खास चबूतरे पर अस्ताचलगामी सूर्य की किरणें 4 बजकर 40 मिनट पर एक नियत स्थान पर पड़ती है, तभी श्रीराम और लक्ष्मण दूसरे चबूतरे पर दंडवत लेटे भरत और शत्रुघ्न की तरफ दौड़ पड़ते हैं। इस दो मिनट की लीला को देखने के लिए लाखों लोग उमड़ते हैं। गले मिलने के बाद चारों भाई सभी को दर्शन देते हैं।
इस भरत मिलाप( Bharat Milap ) के व्यवस्थापक पंडित मुकुंद उपाध्याय ने बताया- आज से करीब 500 साल पहले तुलसीदास के समकक्ष मेघा भगत उस समय विचलित हो उठे, जब तुलसीदास ने अपना शरीर त्याग दिया। मान्यता है कि तुलसीदास ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए। उन्हीं की प्रेरणा से आज से 481 साल पहले इस स्थल पर भरत मिलाप की लीला शुरू की गई।
उन्होंने कहा, तुलसीदास ने रामचरितमानस को काशी के घाटों पर लिखा। उसके बाद तुलसीदास ने भी कलाकारों को इकट्ठा कर लीला यहीं शुरू की थी। लेकिन, उसको परंपरा के रूप में तुलसी के समकालीन गुरु भाई मेघा भगत जी ने ढाला। मान्यता ये भी है कि मेघा भगत को इसी चबूतरे पर भगवान राम ने दर्शन दिया था। उसी के बाद यहां भरत मिलाप होने लगा।जाति के अहीर मेघाभगत विशेश्वरगंज स्थित फुटे हनुमान मंदिर के रहने वाले थे।
नाटी इमली के भरत मिलाप ( Bharat Milap )में यदुकुल के कंधे पर रघुकुल का मिलन होता है। सारे भाइयों से सुसज्जित करीब 5 टन का पुष्पक विमान यादव बंधुओं के कंधों पर अयोध्यापुरी पहुंचता है।
आदिलाटभैरव रामलीला समिति के लोगों के अनुसार, बताया कि सफेद बनियान और धोती बांध सिर पर गमछे का मुरेठा कसकर यादव समाज के लोग पुष्पक विमान उठाते हैं। यादव बंधु जब रथ उठाने जाते हैं तो वे साफा पानी दे, आंखें में काजल लगाकर, घुटनों तक धोती पहन, जांघ तक खलीतेदार बंडी पहने हुए इसका हिस्सा बनते हैं।
धर्म नगरी काशी के इस विशाल आयोजन के साक्षी काशी नरेश भी बनते हैं। वो हाथी पर सवार होकर तय समय पर लीला स्थल पहुंचते हैं। उसके पहले भगवान श्रीराम का रथ लीला स्थल पर पहुंच जाता है। महाराज बनारस को लीला स्थल पर सलामी दी जाती है।
कुछ ही देर बाद लीला शुरू होती। श्रीराम के जयघोष के बीच सबसे पहले लीला स्थल से महाराजा बनारस विदा लेते हैं। काशी नरेश महराज बनारस उदित नारायण सिंह लीला में आने की शुरुआत की थी। वो 1796 में पहली बार इस लीला में शामिल हुए थे। इस साल इसको 229 साल हो गए हैं।